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पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२८२

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गोरखा-बानी] २३७ समुद्र उपरांति गंभीर नाहीं। पाताल उपरांति अर्थ नाहीं। सूरज' उपरांति तप्त नाहीं। काया उपरांति रतन नाहीं। संघ उपरांति३ शास्त्र नाही | अजप उपरांति जापनाहीं। अघोर उपरांति मंत्र नाही। नारायण उपरांति इष्ट नाहीं। निरंजन उपरांति ध्यान नाही। नाहीं गुरु उपरांति दाता नाहीं। अग्यान उपरांत तिमिर नाही। ग्यान उप- रांति प्रकाश नाहीं । चरचा उपरांति रस नाहीं। मेष उपरांति पूजी नाही। साधू उपरांति देवता नाहीं । असाधु उपरांत भूत नाहीं । माया उपरांति जड़ नाहीं । जीव उपरांति चैतन्य नाहीं। हिरदा उपरांति धाम नाहीं। पवन उप- रांति चंचल नाहीं। मन उपरांति कर्ता नाहीं। १. (ड) में ये वाक्य अधिक है-चंद्रमा उपरांति शीतल नाहीं। वैकुंठ उपरांति उर्घ नाहीं । २. (घ) सांच । ३. (घ) अपरि । ४. (ड) में ये वाक्य अधिक है-बुद्धि उपरांति व्याकरण नाहीं। स्वासी उपरांति वेद नाहीं। परा- चीन उपरांति वंधि नाहीं। स्वासा उपरांति मुक्ति नाहीं। चाह उपरांति पाह नाहीं । अचाह उपरांति पुण्य नाहीं। कर्म उपरांति मैल नाहीं। दोष उपरांति कुबुदि नाहीं। निदोष उपरांति सुबुद्धि नाहीं। सिष्टि उपरांति पोष नाहीं। ५. (घ) चोर । ६. (घ) जाप । ७. (घ) यष्ट। ३३