पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२८६

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[क]-(६) कुछ पद आदि नाथादि पार ब्रह्म ॐ शिव सकती। नाद विंद ले काया उतपती। नाद-विंद रूपी बोलिए ॐकार । विंद रूपी वोलिए काया । प्रथम भादि उतपती माया ॥ उदै भईला सूर अस्त भईला चंदा । दुहु बिच कल्पना काल का फंदा । उदै प्रह अस्त एक करि बास । तब जानवा जोगींद्र जीवन भासा॥ बारह कला रवि सोलह कला ससी। चारि कलागुरुदेव निरंतर वसी। हीण पद सु-राया लागा डंसा । तन का तेज ले उडिया मा ।। हंस का तेज ले थिर रहै काया। काल का भेद कहो गुर राया। द्वैपष छेदि एक है रहणां । चंद्र सूर दोउ सम करि गहणां ॥ ॐच भै उपरै, मध्य निरंतरै [आई। ता तलि भाठि जराई ।। सीजि अमीरस कचन हुआ। यहि विधि पिंजरै वानवै सुश्रा ॥ उपजत दीसंत निपजंत नाहीं। आवरण नास्ति संसार माहीं॥ बूमिले सतगुर वुद्धि भेद सिद्ध संकेत । परचा जाणि लगावो हेत ॥ अरम धूरम जोवी माला । नौ कोटि पिड़की पूरले वाला ॥ वाला न टूटै षिड़की न भाजै । पिंड पड़े तौ सतगुर लाजै ।। मरे सागर धुनि धूसर कूची। वहां सकल विध है सोई सूची ॥ इहि विधि जोमी अतीत होई । अमर पद ध्यावत विरला कोई ।। कुछ पद केवल (ड) के आधार पर । सौजि=सिद्ध हो कर । मूल में 'सूची' नहीं है । उसके स्थान पर कोई दूसरा शन्द भी नहीं। है । सूची (शुचि) तुक को देखते हुए अनुमान से वहां पर रख दिया गया है।