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पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/६८

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a गोरख-बानी] ४५ १३ १४ १६ १७ इक' लष सींग़णि नवलप बांन । बेध्या मीन गगन अस्थांन । बेध्या मीन गगन कै साथ । सति सति५ भाषत श्रीगोरषनाथ ॥१२॥ तूटी डोरी रस कस बहै । उनमनि लागा अस्थिर रहै । उनमनि लागा होइ अनंद । तूटी डोरी बिनसै कंद ।।१२८।। सबद बिन्दौ' अवधू सबद विन्दौ१७ सबदे११ सीत१२ काया। निनाणवै कोडि राजा मस्तक मुडाइले परजा का अंत न पाया ॥१२९॥ परतर पवना रहै निरंतरि१५ । महारस सीझै काया अभिअंतरि१५ गोरख कहै अम्हे चंचल ग्रहिया । सिव सत्ती ले निज घरि रहिया ॥ (योग की साधना) एक लाख शिंजिनियों (प्रत्यंचाओं ) अर्थात् धनुषों (से) नौ लाख बाय छूटने के समान है, उससे ब्रह्मरंध्रस्थ मीन (मछली, लक्ष्य तत्व) निश्चय बिंध गया। गोरखनाथ सत्य वचन कहते हैं कि सत्य ज्ञान के साथ ब्रह्मरंध्र भी बेध दिया गया है अर्थात् थोड़े समय के लिए ज्ञान ही नहीं हो गया, उसमें स्थिरता भी आ गई है। सींगणि, शिंजिनी, प्रत्यंचा ॥ १२ ॥ डोरी (समाधि अथवा लोनावस्था) के टूट जाने से सार वस्तु वह जाती है, नष्ट हो जाती है। किन्तु उन्मनी समाधि के लगने से स्थिरता पाती है और आनन्द होता है, किन्तु समाधि के टूटने से शरीर नष्ट हो जाता है ॥ १२८॥ हे अवधूत, शब्द को प्राप्त करो, शब्द को प्राप्त करो। शब्द से शरीर सिद्ध होता है, (इसी शब्द को प्राप्त करने के लिए ) निनाणवे करोड़ राजा चेजे हो गये और प्रजा में से कितने हुए इसका तो अंत ही नहीं मिलता॥ १२६॥ (जव ) तीचय पवन निरन्तर रहता है, (उसकी चंचलता छूट जाती है), १. (ग) येक; (घ) एक । २. (घ) नौ। ३. भांन। ४. (ग) गगनि । ५. (क) सत्य सत्य । ६. (क) टूटी। ७. (क) उनमन। ८. (क) लागी। ६. (ग) विणसे । १०. (क) विंदौ"व्यंदौ; (ख) बदोरे "वंदौ; (ग), (घ) बंदौ रे बदौ । ११, (ख), (ग) सबद । १२. (ख) सीझत । १३. (ग) कौडि । १४. (ख) में 'मस्तक मुडाइले' के स्थान पर राज तजेवा' और (ग), (घ) में 'सीधा । १५. (क) निरन्तर 'अभिअन्तर । १६. (क) हमे; (ग) अमै । १७. (ग), (घ) सक्ति। ९