गोरख-बानी] ६१ एकाएकी सिध नांउ दोइ रमतिर ते साधवा । चारि पंच कुटुम्ब नांउ दस बीस ते लसकरा ॥१७॥ मन मुषि जाता गुर मुषि लेहु । लोही मास अगनि मुषि देहु । मात पिता की मेटौ" धात । ऐसा होइ बुलावै नाथ ॥१०॥ नाद नाद सव कोइ कहै । नादहिं ले को बिरला रहै। नाद विद है फीकीसिला। जिहिं साध्या ते सिधैं मिला||१८१॥ दरवेस सोइजो'दरकी जाणे १४। पंचे१५पवन अपूठा आणे सदा सुचेत रहै दिन राति । सो दरवेस अलह की जाति ॥१८२॥ एकाकी रहने वाले का नाम सिद्ध है। जो दो एक साथ रमते (रहते) हैं वे साधु है, चार पाँच हो गये तो उन्हें कुटुम्ब समझना चाहिए और दस बीस हो गये तो सेना ॥ १७६॥ मन की ओर जाती हुई (दहिर्मुखी) वृत्ति को गुरु की अोर अभिमुख (अंतर्मुख) करो। रक्त और मांसमय काया को ब्रह्माग्नि में भस्म कर दो (उसकी ओर अनासक्त हो जानो) माता-पिता की धातु को मिटा डालो। (माता के रज और पिता के बिंदु से निर्मित शरीर को पूर्ण रूप से वश में कर लो और वंश की वृद्धि में न लगो।) जो ऐसा कर सके नाथ परब्रह्म) उसे स्वयं भपने पास बुलाते हैं ॥ १८० ॥ मुख से तो नाद नाद बहुतेरे कहते हैं किन्तु नाद में लीन कोई विरला ही रहता है। (सामान्यतया तो) नाद-विन्दु शुष्क पत्थर के समान है, किन्तु जिसने उन्हें साध लिया वह सिद्धावस्था में पूर्णता में लीन हो जाता है ॥१८॥ दरवेश वह है बो दर की बात जानता है, जो जानता है कि परमात्मा का घर कहाँ है, जिसे ब्रह्मरंध्र का ज्ञान है। पांचों पवनों को अथवा पवन के १. (क) सिधनां "कुंटेवानां । २. (ग) रै है; (घ) रमै । ३. (घ) ल्हस- करा! ४. (क) लोह; (ग) लोहि । ५. (ग), (घ) मेट। ६. (ग) ऐसो। ७. (घ) होय । ८. (ख), (घ) ले। ९. (ग), (घ) जिनि । १०. (ग) सिधा; (घ) सिधां । ११. (ग), (घ) मिल्या। १२. (घ) सो। १३. (ग) जु। १४. (ग) जाने। १५. (ग) पांचू: (घ) पांचौं। १६. (क) पूठा । १७. (क) रांति जात । १८. (ग) सोइ । १६. (ग) अलाह; (घ) अल्हा । १२ ।
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