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गोरा

गोरा गोरा—हम लोगों की प्रकृतिमें भेद है, किन्तु एक महान् श्रानन्दसे हम अपनी भिन्न प्रकृतिको एक कर देंगे। तुममें और हममें जो प्रेम है वह सामान्य प्रेम है, इसकी अपेक्षा जो बड़ा प्रेम है, उसके द्वारा हम तुम दोनों मिलकर एक हो जायँगे ! वह अखएड प्रेम जव तक सत्वरूपमें परिणत न होगा तब तक हम दोनोंके बीच पग-पगमें अनेक आघात- संघात, विरोध बिच्छेद होते ही रहेंगे। इसके आद एक दिन हम लोग सब भूलकर, अपनी विमिन्नता और अपनी मित्रता को भी भूलकर एक बहुत बढ़े आत्मत्याग के भीतर अटल बल से मिलकर खड़े हो सकेंगे। वह निविड़ आनन्द ही हम लोगों की मित्रताका अन्तिम परिणाम होगा। विनयने गोराका हाथ पकड़कर कहा-यही । गोरा---उतने दिन तक मैं तुमको अनेक कष्ट दूँगा ! मेरे सब अत्याचार नुमको सहने पड़ेंगे। हम लोग क्या अपनी मित्रताको जीवनके अन्तिम लक्ष्य तक न निभा सकेंगे ? जैसे होगा, उसे बचाकर चलेंगे, कभी उसका अनादर न करेंगे । इतने पर भी यदि मित्रता न रहेगी तो उपाय क्या है, किन्तु यदि बच रही तो वह अवश्य एक दिन सफल होगी। इसी समय दोनोंने किसीके पैरों की आहटसे चौंककर पीछेकी ओर देखा, आनन्दमयी छत के ऊपर आई है। उसने दोनोंके हाथ पकड़ कमरे की ओर खींचकर कहा चलो, सोनेको चलो, रात भर जागते रहे हो, अब जाकर सो जानो। दोनोंने कहा-~-माँ अब नींद न आवेगी । "श्रावेगी जरूर" यह कहकर आनन्दमयी जबरदस्ती दोनोंको कमरेके भीतर ले आई और दोनों को विछौने पर पास सुलाकर कमरेका द्वार बन्द कर दिया और दोनों के सिहराने पैठकर पंखा झलने लगी। विनय ने कहा-~-माँ, तुम यहाँ बैठकर पंखा झलोगी तो हमें नींद न आवेगी। अानन्द ----देलूँगी कैसे नींद नहीं आती है । मेरे चले जाने पर फिर तुम दोनों बातें करना प्रारम्भ करोगे, मेरे रहने से वह न होगा ।