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गोरा

3 गोरा [ १२३ ब्याह करके जरा जिम्मेदारीके बोझसे दवांगे, और तब मैं और तुम दोनों एक चालसे चल सकेंगे। विनयने जरा हँसकर कहा- अगर तुम्हारा यही मतलब हो, तो इधर भी बटखरा रखो। गोरा-बटखरेके बारे में कुछ आपत्ति तो नहीं है न ? विनय--वजन बरावर करनेके लिए जो कुछ मिल जाय, उसीसे काम चलाया जा सकता है । वह चाहे पत्थर हो चाहे ढेला, जैसी खुशी हो । यह विनय के जानने को बाकी नहीं रह गया कि गोराने इस विवाह के प्रत्ताव में क्यों इतना उत्साह प्रकट किया ! गोराके मनमें यह सन्देह हुआ है कि विनय कहीं परेश बावूके परिवार में व्याह न कर बैठे, यह अनुमान करके विनय मनहीमन हँसा। दोपहरको भोजन के उपरान्त रात की नींदका ऋण चुकाने में ही दिन बीत गया । उस दिन दोनों मित्रों में और कोई बात नहीं हुई । जब जगतके ऊपर सन्ध्याके अन्धकार का पर्दा पड़ गया, जिस समय प्रणयी लोगोंके बीच मनका पर्दा उठ जाता है, तब, उसी समय, छतके ऊपर बैठे हुए विनयने सीधे अाकाश की ओर ताक कर कहा-देखो गोरा मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ। मुझे जान पड़ता है, हम लोगों के स्वदेश प्रेमके भीतर कोई बहुत बड़ी कमी है। हम लोग भारतवर्षको आधा करके देखते हैं। गोरा–कैसे, बतायो ? विनय-हम लोग भारतवर्षको केवल पुरुषोंका ही देश समझते और उसी दृष्टिसे देखते हैं। स्त्रियों की ओर हमारी दृष्टि ही नहीं है। गोरा--तुम अंग्रेज की तरह शायद औरतोंको घर, बाहर, जलमें स्थल में, शून्य में, आहार-आमोद में, काम काजमें; सभी जगह देखना चाहते हो । मगर इसका फल यह होगा कि तुम पुरुषोंकी अपेक्षा औरतोंको ही अधिक करके देखते रहोगे। विनय-ना, ना, मेरी बातको इस तरह उड़ा देनेसे काम नहीं चलेगा। मैं औरतोंको अंग्रेजोंकी तरह देखंगा या नहीं, तुम यह बात क्यों उठातें