पृष्ठ:गोरा.pdf/१४५

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[ २० ] नहिन ने उस दिन गोरासे कुछ न कहा। वे दूसरे दिन उसके कमरे में गये। उन्होंने सोचा था, गोराको फिर राजी करने में बहुत कहना सुनना पड़ेगा। किन्तु उन्होंने ज्याही आकर कहा कि विनय कल शामको आकर विवाह के सम्बन्ध में पक्का वचन दे गया है और फल दान के विषय में तुमसे सलाह लेने को कहा है, त्याही गोरा ने अपनी सम्मान प्रकट कर कहा- अच्छा तो फल दान हो जाय । महिम ने अचम्मित होकर कहा- अभी तो कहते हो, अच्छा, पीछे फिर कहीं लड़ न बैठना। गोरा-मैंने रोकनेके अभिप्रायसे तो झगड़ा किया नहीं। अनुरोव का ही झगड़ा है। महिम इसी लिए हम तुमसे हाथ जोड़कर वह विनय करते है कि न तुम इसमें बाधा दो और न अनुरोध ही करो : न तो हमें कुछ वक्ष की नारायणी सेना की ही जरूरत है और न पाण्डव पक्ष के नारायण को हो । मैं अकेला जो कर सकूँगा वही अच्छा होगा ! मैंने भूल की थी जो तुमसे अनुरोध करनेको कहा था। पहले मैं यह न जानता था कि तुम्हारी सहायता भी उलटी होती है ! जो हो; वह जो कार्य हो रहा है इसमें तुम्हारी इच्छा तो है गोरा-जी हाँ, इच्छा है। महिम-~-यही चाहिये । तुम इस विषयमें अब कुछ उद्योग न करना। गोराने अव समझा कि विनयको दूरसे खींच रखना कठिन होगा। जहाँ आशंकाकी जगह है वहीं पहरा देना चाहिए। उसने मन में सोचा कि यदि परेश वाबू के घर बराबर जाया बाया करूँ तो विनयको रेके भीतर रख सकूँगा। १० नं.१० १४५