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गोरा

१६०] गोरा गोरा--हाँ, उनके यहाँ इनका कोई ख्याल नहीं है। और समय होता तो इस तरह के उत्तरके साथ-साथ एक तरहकी उत्तेजना प्रकट होती। लेकिन आज उसका कोई लक्षण न देख पड़ा। यह देख कर आनन्दमयी फिर चुपचाप बैठकर सोचने लगी। दूसरे दिन सबेरे उठ कर गोरा और दिनकी तरह फौरन मुँह धोकर अपने कामके लिए तैयार हो गया। वह अनमने भावसे अपने सोनेके कमरके पूर्व अोरका दरवाजा खोलकर कुछ देर तक खड़ा रहा । जिस गलीमें यह घर था वह पूर्व की ओर एक बड़ी सड़कमें जाकर मिली है। उसी बड़ी सड़कके पूर्वकी ओर एक स्कूल है! उस स्लकूसे मिली हुई जमीन में एक पुराना जामुनके पेड़के ऊपर एक पतली सी उज्जवल कुहरेकी चादर उड़ रही थी और उसके पीछे उन्मुख सूर्योदयकी अरुण रेखा धुंधले रूपमें दिखाई दे रही थी। गोरा चुपचाप बहुत देर तक उसी ओर देखता रहा । देखते देखते वह कुहरेका टुकड़ा गायब हो गया उज्वल धूप पेड़की शाखाओंके भीतरसे अनेक चमचमा रही संगीनोकी तरह उन्हें फोड़ कर बाहर निकल आई । देखते ही देखते कलकत्तेकी सड़क बाद- मियोंकी भीड़ और शोर-गुलसे मर गई ! इसी समय एकाएक गलीके मोड़ पर अविनाशके साथ और कई छात्रों को अपने घरकी और आते देख कर गोराने कहा—ना यह सब कुछ नहीं; यह किसी तरह भी न चलेगा ।—यह कह कर तेजीके साथ कमरेसे बाहर निकला । गोराके घरमें उसका सब दल-बल अाया हो और गोरा उसके बहुत पहलेसे ही तैयार न हो यह आज नई बात थी। आज तक ऐसी घटना एक दिन भी नहीं होने पाई। इस साधारण त्रुटि ने गोराक मनको एक भारी धिक्कारका पक्का दिया। उसने मन ही मन निश्चय किया कि अब वह फिर कभी परेश बाबूके घर न जायागा, यह चेष्टा करेगा कि कुछ दिन विनयसे भी भेंट न हो जिसमें यह सब आलोचना बन्द रहे। v और