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गोरा

। गोरा [ १६१ उस दिन नीचे आकर यही सलाह हुई कि गोरा अपने दलके दो तीन आदमियोंके साथ, अँड ट्रंक रोड होकर, पैदल ही भ्रमणके लिए. निकलेगा। राहमें भोजनके समय किसी भले अादमीक घर अातिथ्य ग्रहण करेगा, साथ रुपया पैसा कुछ भी न रहेगा। इस अपूर्व सङ्कल्पका मनमें धारण कर गोरा कुछ अधिक उत्साहित . हो उठा। सव वन्धनोंको तोड़कर इस खुले रास्तेसे निकल पड़नेका प्रबल आनन्द उसके मन में उमड़ उठा । भीतर ही भीतर उसका मन जिस एक जञ्जीरसे जकड़ा था, वह जोर बाहर होने की इस कल्पनासे.मानों टूटी सी जान पड़ी। यह असक्ति मात्र केवल माया है और कर्म ही सत्य है-इस बातको मन ही मन खूब मनन कर भ्रमण करनेकी तैयारीके लिये अपने नीचे वाले कमरेसे बाहर निकला। उसी समय कृष्णदयाल गङ्गा स्नान करके तांबेकी कलसीमें गङ्गाजल लिए, रामनाभी अोढ़े मन ही मन कुछ पाठ करते हुए घर आरहे थे। रालेमें उनसे गोराकी एकाएक में हो गई गोराने लज्जित होकर झटपट उनके दोनों पैर छूकर प्रणाम क्रिया । वे सकुचाकर ठहरो, ठहरो कहकर घर की ओर बढ़े। पूजा पर बैठने के पहले उन्हें छू लेनेसे उनका गङ्गास्नानका फल मिट्टी हो गया । 'कृष्णदयाल मेरा संपर्श बचाये रहते है। यह गोरा न जानता था। वह समझता था कि छूत पन्थी होने के कारण सब प्रकार सबका सम्बन्ध बचाकर चलनाही दिन- दिन उनकी सावधानताका एकमात्र लक्ष्य है। प्रानन्दमयीको तो वे म्लेच्छ कहकर उससे दूर ही रहा करते थे। महिम काम-काजी आदमी था । उसको फुरसत कहाँ जो उनसे भेंट करे । घरके सभी लोगोंके बीच केवल महिमा की बेटी शशिमुखी को वे अपने पास बिठाकर संस्कृत स्तोत्रोंका अभ्यास कराते और उससे पूजाकी सेवा टहल कराते थे। गोरासे अपने पैर छु जाने के कारण कृष्ण दयाल जव घबराकर भागे तव उनके सङ्कोचके सम्वन्धमें गोराको चेत हुआ और वह मन ही मन हँसा । इस प्रकार पिताके साथ गोरा का सव सम्बन्ध धीरे धीरे टूट गया था और माताके अनाचारकी वह चाहे जितनी निन्दा करे, पर तो भी वह फ० नं० ११