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गोरा

गोरा [२०५ बेईमान दरोगाके साथ एक बिछौने पर बैठनेमें भी पाप है। उसके पंजेमें पड़कर मैंने जितने दुष्कर्म किये हैं उनको जबान पर भी नही ला सकता । अब अधिक दिन नहीं । दो-तीन वर्ष किसी तरह और इस काममें रह लड़की के ब्याह कर देनेका खर्च जमा कर लेने पर मैं अपनी स्त्री सहित काशीवास करूँगा । मुझे भी यह सब अच्छा नहीं लगता ! किसी समय मनमें इतना विषाद होता है कि गलेमें फाँसी लगाकर मर जाऊँ, जो हो, श्राज रातको श्राप जायेंगे कहाँ ? यहीं खा-पीकर सो रहिए । उस पारी दारोगाकी आया तक आपके ऊपर न पड़ने दूंगा | आपके स्वाने पीनेका सब प्रबन्ध मैं अलग कर दूंगा। गोराको साधारण लोगोकी अपेक्षा भूख अधिक लगती थी। आज सबेरे उसने अच्छी तरह नहीं स्वाया । किन्तु मारे क्रोधके उसका सारा शरीर जल रहा था । वह किसी माँति यहाँ रहनेको राजी न हुआ ! उसने यह कहकर चलनेको तैयार हुआ कि मुझे एक बहुत जरूरी काम है । मङ्गल-अच्छा जरा ठहर जाइए, लालटेन साथ कर देता हूँ। गोरा इसका कोई उत्तर न देकर तीरकी तरह निकल.पड़ा। मङ्गलप्रसाद ने धर लौटकर दारोगा से कहा--मालूम होता है, वह आदमी सदर गया है। इसी वक्त एक आदमी को मैजिस्ट्रेट के पास भेज दीजिये। दरोगाने कहा—क्यों, क्या करना होगा? मङ्गलने कहा---और कुछ नहीं, यह जाकर डिविजनल अफिसरको जता अावे कि एक भला यादी कहीं से श्राकर गवाहको बिगाड़ने की चेष्टा में घूम रहा है। -:०