पृष्ठ:गोरा.pdf/२०६

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[ २७ ] मैजिस्ट्रेट अडला साहब सन्ध्या समय नदीके किनारेकी सड़क पर पैदल घूम रहे हैं, साथ में इरान बाबू हैं । किन्तु उनसे कुछ दूर थोड़ी पर सवार हो उनकी मेम परेश बाबूकी लड़कियोंको साथ ले हवा खानेको निकली है। ब्रैडला साहब कभी-कभी गार्डनपार्टीमें अच्छे-अच्छे बङ्गालियोंको न्योता देकर अपने यहां बुलाते थे। जिला स्कूल में इनाम बांटने के लिए वहीं सभापति का आसन ग्रहण करते थे ! कोई रईस यदि अपने बेटी की शादी में उन्हें बुलाता तो उसका निमन्त्रण स्वीकार करते थे। उनकी कचहरी के सरकारी वकीलके घर गत दशहरेके उत्सव में जो यात्रा हुई थी, उसमें दो लड़कोंने भिश्ती और मेहतरानी का पार्ट लिया था और परस्पर कुछ बातें की थी। उन दोनों का अभिनय मैजिष्ट्रेट साहब को बहुत अच्छा लगा। उन्होंने इस अभिनय पर हर्ष प्रकट किया था। और उनके अनुरोध से उस अभिनय का कुछ अंश दूबारा दिखलाया गया था। उनकी स्त्री पादरीकी वेटी थीं। उनके यहां कमी कभी पादरियोंकी लड़कियां आकर चाय पानी पीती थी। भीतर शहरके उसके एक कन्या- पाठशाला स्थापितकी थी और उस स्कूलमें पढ़नेवाली लड़कियों का अभाव न होनेके लिए वह यथेष्ट चेष्टा करती थी। परेश बाबूके घर की लड़कियों में विद्या की चर्चा देख वह उन्हें बराबर उत्साह देती थी; दूर रहकर भी की कमी उनके पास पत्र मेजती और बड़े दिनकी खुशीमें उन्हें धर्म अन्य उपहार देती थीं। प्रदर्शनीका दिन आ गया। मेलेका प्रबन्ध बहुत टीक है। दूर दूरके लोग कोई सौदा बेचने कोई खरीदने और कोई तमाशा देखने को आये २०६