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गोरा

गोरा [ २१५ लिए 'विचार' की लड़ाई में हार और जीत दोनों ही सर्वनाशक सनान है ! फिर जहाँ राजा स्वयं वादी है, और प्रदिवादी मेरे समान सन्मन्न अादनी है. वहीं वकील बैरिस्टरका प्रबन्ध है । मैं अगर वकील को. फीस देकर खड़ा कर सका, तब तो अच्छा ही है, नहीं तो.भाग्य में जो लिखा हा! विचर में अगर वकीलकी सहायता का प्रयोजन है, तो फिर. गवर्नमेंटके विरुद्ध पक्षको क्यों अपना वकील श्राप खड़ा करने के लिए, वाध्य होना होगा। वह किस तरहका राजधर्म है? नानुकाडीने कहा-नाई, स्वफा क्यो होते हो ? सूक्ष्म विचार करने केला, मून आईन बनाना होता है, और शून आईन बनाने पर पर कानुनी पेशा लोगोके बिना काम नहीं चलता ! पेशा वा धन्धा चलाने में न्य-विक्रयका भाव आ ही जाता है । अतएव सभ्यता की अदालत आरही विचार ( इन्साफ ) के क्रय-विक्रय की बाजार अवश्य हो उठेगी तिसरे पास नपर्व नहीं है, उसके टगे जाने की सम्भावना अवश्य यही रहेगा : अच्छा नुन अगर राजा होते तो क्या करते बालाओ के नहीं ? गोगने बहादर अगर ऐसा कानुन बनाता के हजार डेढ़ हजार परली तनख्वाह पाने वाले विचारककी बुद्धिने नी उसके रहत्व का भेद होना सन्न्य न होता, तो अभागे वादी और प्रतिवादी दोनों की और सरकारी खर्च ले ही वकील खड़े कर देता । विचार अच्छा और ठीक होनेका वर्च प्रजाके सिर पर लादकर अपने सुविचारक गौरवका दान मुग़ल-पठान शासकोंके अपर गालियों की बौछार कभी न करता । सातकौड़ीने कहा- अच्छी बात है, जब कि बह शुभ दिन अभी नहीं आया-तुम राजा नहीं हुए.-.और जब फिलहाल तुम सभ्य राजाकी अदालत के आसामी हो तव तुमको या तो गाँठके पैसे खर्च करने पड़ेंगे, और नहीं तो वकील मित्रकी शरणमें जाना होगा। गोराने जिद करके कहा—कोई चेष्टा न करके जो गति हो सकती है, वहीं गति मेरी हो। इस राज्यमें तम्पूर्ण रूपसे निरुपाय मनुष्यकी जो गति हैं, वही गनि मेरी भी है।