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गोरा

गोरा [ २२६ था। गोग-जन मनुष्य के लिये जेलका शासन कुछ भी नहीं है; किन्तु आदिसे अन्त तक इस घटनामें विनयके साथ गोराका कोई योग न था--- गोराके जीवनकी प्रधान घटनामें बिल्कुल ही विनयका संसर्ग नहीं है। दोनों मित्रोंके जीवनकी धारा यह जो एक जगह विच्छिन्न हो गई है, वह फिर जव मिलेगी तब क्या इस विच्छेदको शून्यताकी पूर्ति हो सकेगी ? बन्धुत्वकी सम्पूर्णता क्या अवको खंडिल नहीं हो गई ? जीवन का ऐसा अम्वन्द-ऐसा दुर्लम-बन्धुत्व ? अाज एक ही रातमें विनय अपनी एक ओर को शुन्यता और दूसरी ओर की पूर्णनाका एक साथ अनुभव करके जीवन के मुजन प्रलयके सन्धि कालमें निश्चल स्तब्ध भाव से बैठे बैठे: अंधकारको और ताकता रहा। किराएकी गाड़ी परेश बाबूके दरवाजे के पास आकर खड़ी हुई। उतरते समय ललिताके पैर काँप उठे, और घर के भीतर प्रवेश करने के समय उसने जोर करके अपने जो को जरा कड़ा कर लिया, यह बात विनयने साल सनक ली। ललिताने धुन में प्राकर अबकी जो काम कर द्वाना है, उनका अपराध कितना बड़ा है, और उसका वजन कितना है, इसका अनुमान का प्राय किलो तरह नहीं कर पाती थी। लालता जानती थी कि परंश बाबू उसे ऐसी कोई नी बात नहीं कहेंगे, जिसे ठीक मत्सना कहा जा सके; किन्तु इसी से परेश बाबूके चुप रहने को ही वह सबसे अधिक डरती थी। ललिताके इस संकोचके भावको लक्ष्य करके विनय को इस जगह क्या करना चाहिए, वह बहुत सोच विचार करके भी कुछ टीक न कर सका। उसके साथ रहनेसे ललिताके लिये संकोचका कारण अधिक होगा, या नहीं, इसीकी परीक्षा करने के लिए. उसने जरा दुबिधाके स्वर में कहा- तो अब जाऊँ? ललिता ने चटपर कहा-ना चलिए, बाबूजी के पास चलिए । ललिताके इस समयके व्यन अनुरोबसे विनय मन ही मन आनन्दित हो उठा । घरमें पहुंचा देने के बाद उसका कर्तव्य जो समाप्त नहीं हो