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गोरा

गोरा [२३७ जाता है। बिनयका ऐसा म्लान मुत्र और उसके भावका ऐना परिवर्तन ललिताने और कभी नहीं देखा था। विनयके मुंहकी ओर देखते ही तीन अनुतापकी ज्वालामय यन्त्रणाने तुरन्त ललिताके सम्पूर्ण हृदयको अाक्रान्त कर लिया। वह वार-बार अपनी इसा अनुरवा पर पछताने लगी। सताश झट खड़ा हो गया और विनय का हाथ पकड़ सिर हिलाकर विनती भरे स्वरमें बोला--विनय बाबू बैठिये, अभी नत जाइएगा । फिर मौसी की ओर देखकर उसने कहा--विनय बाबूमे जलपान करनेकी कही-ललिता वइन, विनय बाबू को क्यों जाने देनी है ? विनयने कहा--- ---भाई सतीश, अाज माफ करो; अगर नसी बाहेगी तो मैं और किसी दिन अाकर प्रसाद पाऊँगा । अाज देर हो गई है। विचारसे वात कुछ विशेष नहीं किन्तु विनयके कण्टस्वरमें ममता का भाव भरा था। उसकी करुणा और उसके मनके भाव को सतीशकी मौसी उनक गई। उसने एक बार बिनयके और एक बार ललिताके मुंहकी और चकित होकर देग्ला ! ललिता तुरल वहाँ से उठी और कोई बहाना करके अपने कमरेमें चली गई । वह कई दिन इसी प्रकार अपनी करनी पर कुढ़कर आपही आप रोती रही।