पृष्ठ:गोरा.pdf/२६

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गोरा

२६ । गोरा तो आनन्दमयी किन्ना उत्कण्ठित हो उठती है, उसको पास विटाकर खिलाने की प्रत्याशा ले वह अक्सर उन लोगोंकी बात चीत खतम करके उठनी प्रतीक्षा अनुकता के साथ किया करती है ! वही विनय सामाजिक घृणा के कारण अानन्दमयीको दालान में जाकर भोजन नहीं करेगा इसे क्या अानन्दमयी नह सकती हैं, या विनय ह. से यह सहा जायगा ? उस समय की अानन्दमयी ने हँसकर अवश्य यह कहा था कि वह अब किसी अच्छे अलीन ब्राह्मण के हॉथ साई बनवाकर उसे खिलायेंगी; किन्तु इससे उनके हृदयका कैसा नर्न भेदी दुःश्व प्रकट हो रहा है। विनय अपने मनमें बार-बार यहीं सोचता हुअा अपने घरमें पहुँचा । कमरे में अन्धकार था ! दियासलाई खींचकर बिनपने लैन्य जलाया । कमरे में पहुँच कर विनयका दम जैसे बुटने लगा ! मनुष्य के संग और लेह के अनाव ने आज उसके हृदयको जैसे असह्य भारसे पीड़ा पहुंचाना शुरू किया : देशाचार, समाज रक्षा आदि सब कर्तव्योंको वह किसी तरह स्पष्ट और सत्य नहीं बना सका - उसे इनकी अपेक्षा अधिक सत्य वही "अन्विन पाखी' ( अपरिचित चिड़िया) प्रतीत होने लगी, जो एक दिन साबनके उज्जवल नुन्दर प्रातः काल में पिंजड़े के पास आकर जिर उस विजड़ेक वासने उड़ गई। किन्तु उस 'अचिन पाली' की बातको विनय किसी तरह अपने मन में न आने दंगा--किसी तरह नहीं ! इसी कारण मनको श्राश्रय देने के लिये वह अानन्दमी के उसी घर का चित्र अपने मन में अंकित करने लगा, जहाँसे गोरा ने उतको लौटा दिया है। वह सोचने लगा, पका सफेद पत्थरका फर्श चमत्रना रहा होगा एक तरफ तजतके ऊपर सफेद वाले के परकी तरह सफ़द कोमल बिछौना बिछा होगा । विछीने के पासही एक छोटेसे टूल के ऊपर रेड़ी के तेलका दिया जल रहा होगा। माँ अनेक रंगके डोरै लेकर उसी दीपकके पास भुकी हुई मुजनीके ऊपर सुईका काम बना रही होगी । लमिनिया नीचे फर्श पर बैठी अप्पट उच्चारण के साथ बंगलामें लगातार तरह तरहकी चर्चा कर रही होगी, माँ उनमेंकी अधिकांश बातों पर ध्यान ही नहीं