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गोरा

1 गोरा [२७५ सोचकर मैंने उसकी बात काटकर अपने मनमे कोई काम करना उचित न समझा। आखिर एक दिन मेरे मन में क्या आया ! मैंने नीलकान्नसे छिपाकर देवरके कहने पर एक कागज पर दस्तखत कर दिया। उसमें क्या लिखा था, यह मैं अच्छी तरह नहीं जान सकी ! मैंने सोचा मुझे सही करने में क्या डर है । मैं कौनसी वस्तु अपने पास रखना चाहती है, जिसके चले जाने में मुझे कष्ट हो । जब मैं यों ही अपनी सम्पत्ति देनेको तैयार हूं तब कोई ठगकर ही क्या करेगा? सब तो मेरे समुरका ही है । उनका धन उनके बेटे पावें, इसमें मेरा क्या ? लिखा पढ़ी, रजिस्टरी आदि सब हो गई ! नत्र मैंने नीलकान्तको बुलाकर कहा---ग्रार सट न हो मेरे पास जो कुछ था, सब लिख पढ़ दिया मुझे अब किसीस कुछ प्रयोजन नहीं । नीलकालने चौंककर कहा-यापन ! यह क्या किया । जब उसने दलादेजका नकल पड़ी. तब उसने जाना कि मैंने सब म. साबह न अपना नावेगार त्याग या ई : बह जानकर मलकान्तों के सोना नही जब मालिकको मृत्यु हु तवं नेराहक अचानाही उसके जीवनका एक प्रधान उहश था। उसको सारी त्रुद्धि और शक्ति उसी की हिफाजत में लगी रहती थी ! इस इकको लेकर उसने कितने नानले मुट में लई, कितने वकील तुलनारोके घर देन्टे. तिने का संह इसका टिकाना नहीं। मेरे ही काश पीछे यह देन राज बावलेकी तरह फिरा करता था और उसी में सुख पाता था। उसे अपने वरका कान देखनेको नी समय न मिलता था। यह हक जत्र निबंध स्त्रीके कन्तन की नोकके एक ही बीटमें उड़ गया तब नीलकान्त का सब किया-धरा व्यर्थ हो गया। उसके मनको शान्त करना - असम्भव हो गया।