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गोरा

गोरा [८९ ललिता कुछ कहना चाहती थी किन्तु तुचरिताने उसे रोककर कहा- आप ठीक कहते हैं, आपको मैं कोई दोष देना नहीं चाहती । हारान बाबूने कहा- यदि दोष देना नहीं चाहती तो मेरे साथ अन्याय करना ही क्यों चाहती हो ? नुचरिताने स्पष्ट स्वर में कहा -यदि पार इमो अन्याय कहते हैं, तो मैं अन्याय ही करूँगी। किन्तु - बाहर से आवाज आई-बहन घर में हो ? सुचरिता प्रसन्न होकर झट बोल उी-आइये, विनय बाबू आइये । वहन, तुम भूल करती हो । विनय बाबू नहीं पाये, मै तो विनय मान हूँ। मुझे विनय बाबू कहकर क्यों आदरके शिखर पर चढ़ाकर लजा रही हो-यह कह विनयने घरमें प्रवेश करते ही हारान बाबू को देखा। हारान बाबूके मुँह पर उदासीका चिन्ह देखकर विनयने कहा-बहुत दिन से में न आने के कारण आप नाराज तो नहीं हो गये हैं ? हाराम बाबू ने इस परिहासमें योग देने की चेष्टा करके कहा-नाराज होने की तो बात ही है। किन्तु आज आप बे मौके आये हैं -- सुचरिताके साथ मेरी कुछ विशेष बातें हो रही थी। विनयने घबड़ाकर कहा-यह देखिये, मेरा आना कब बेमोके न होगा, यह मैंने आजतक समझा ही नहीं । इसी नासमझी के कारण यहाँ आने का साहस भी नहीं होता। यह कहकर विनय बाहर जाने लगा। सुचरिताने कहा-विनय बाबू कहाँ चले ! बैटिये । इनके साथ जो बात होनी थी वह खतम हो गई। आप बड़े अच्छे अवसर पर प्रागये। विनय समझ गया कि मेरे आने से सुचरिता एक सङ्कट से उद्धार पा गई। वह प्रसन्न होकर एक कुरसी पर बैठ गया और बोला--मैं किसीके मनको दुखाना नहीं चाहता। जब कोई मुझे बैठने को कहता है तब मैं बै₹गा ही। मेरा स्वभाव ऐसा ही है। इसलिए सुचरिता बहन से यही निवेदन है कि वे इन बातों को समझ बूझकर बोले , नहीं तो विपत्तिमें फंसेंगी। फा० नं. १६