पृष्ठ:गोरा.pdf/२९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ २९१
गोरा

गोरा [ २६१ । रहनेवाला है। यह लिखा पढ़ा नी किसी की अपेक्षा कम नहीं है तथापि वह हरिमोहिनी पर कुछ अश्रद्धा नहीं रखता। विनय इन्हें अपने घरके लोगों की तरह देखता था, इससे इनके मनमें बड़ा ही सन्तोष होता था । इसी कारण थोड़े ही परिचय से विनय को इनके यहाँ आत्मीय का स्थान मिल गया। हरिमोहिनीके पास विनयके जानेके थोड़ी देर पीछे ललिता यहाँ तुरन्त कभी नहीं जाती थी--किन्तु अाज हारान बाबू से गुप्त श्राक्षेपकी चोट खाकर वह सब संकोच-बन्धनको तोड़ बड़ी निर्भीकताके साथ ऊपरवाली कोठरी में गई, और जाते ही विनय याबके साथ बेरोक बात भी करने लग गई। उनकी सभा खूब जम उठी। यहाँ तक कि वीच-बीच में उन सबके हंसनेका शब्द नीचे के घर में अकेले बैठे हुए हारान बाबू के कानकी राह से भीतर प्रवेश कर हृदयको वेधने लगा । वह अब देर तक घर में अकेले न रह सके । वरदासुन्दरीके साथ वार्तालाप करके अपने मनकी मनान्तिक वेदना को दूर करना चाहा । बरदासुन्दरीने जब सुना कि सुचरिताने हारान बाबूके साथ विवाह करने से इन्कार किया है तब वह एकदम अचीर हो उठी। उसने हारान वाव से कहा- सीवेपन से आपका काम न होगा। जब वह बार-बार अपनी सम्मति प्रकट कर चुकी है और ब्राह्म समाज के सभी लोग इस आतको जान चुके हैं और उसकी अपेक्षा कर रहे हैं तर श्राज उनके सिर हिलाने से सब बातें बदल जायँ, यह नहीं हो सकता । उसकी वह अस्वीकृति अव ग्राह्य न होगी । आप अपना दावा किसी तरह न छोड़ें, यह मैं अभी आपसे कहे रखती हूं, ! देखें वह क्या करती है ? इस सम्बन्ध में हारान बाबू को उत्साह देना, धधकती हुई आग में मानों घी डालना हुया । वह अभिमान से सिर उठाकर मन ही मन कहने लगे कि सुचरिता को हारकर मेरी बात माननी ही पड़ेगा, मेरे लिए सुचरिता का त्याग करना कुछ कठिन नहीं किन्तु मैं ब्राह्म समाजके सिरको नीचा कर देना नहीं चाहता।