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गोरा

गोरा ३०४] श्राश्रयके अभाव हा मोहिनी सब कष्ट सहकर इस घरमें है, वरदा- सुन्दरीको इस धारणाको दूर करने के लिए वह हरिमोहिनीको यहाँ से ले जानेमें कुछ भी विलम्ब करना नहीं चाहता था । मुचरिताकी बात सुनकर उसे धकसे स्मरण हो पाया कि इस घर में हरिमोहिनीका वरदासुन्दरीके साथ हो तो एकमात्र सम्बन्ध नहीं है। जिस व्यक्तिने इसका अपमान किया है, उसीको सबसे बड़ा समझना और जिसने बड़ी उदारताके साथ अपने सम्बन्धी की भाँति आश्रय दिया है, उसको भूल जाना उचित नहीं। विनयने कहा-हाँ, यह ठीक है । परेश बाबूको बिना जताये इस तरह जाना न्याय-बिरुद्ध है। सुचरिता जानती थी कि सोने के पहले परेश बाबू अपनी उपासना सम्बन्धी कोई पुस्तक पढ़ा करते हैं। कई दिन ऐसे समय सुचरिता उनके पास जाकर बैठी और उसके अनुरोधसे परेश बाबने उसे कुछ पढ़कर सुनाया है। अाज भी अपने सूने घरमें परेश बाबू चिराग जलाकर एमसनका अन्थ पढ़ रहे थे। सुचरिता धीरे-धीरे उनके पास एक कुरसी पर जा बैठी परेश बाबूने पुस्तक रखकर एक बार उसके मुंहकी ओर देखा । सुचरिता का सङ्कलप भङ्ग हुा । वह जो बात कहने के लिये आई थी, वह कह न सकी। सिर्फ इतना ही कहा--बाबूजी, क्या पढ़ते थे, मुझे पढ़कर सुनाइए। परेश बाबू पढ़कर उसका गम्भीर आशय सुचरिता को समझाने लगे । जब रातके दस बज गये तब पढ़ना समाप्त हुआ। तब भी सुचरिता यह सोचकर कि सोनेके पूर्व परेश बाबूके मनमें किसी प्रकारका सोम न हो, कोई बात कहे-सुने बिना ही धीरे-धीरे उठ खड़ी हुई और चल पड़ी परेश बाबूने उसे पुकार कर कहा-रावा । वह लौट आई। परेश वाबू ने कहा- तुम अपनी मौसी की बात मुझसे कहनं आई थीं ? परेश बाबू मेरे मन की बात समझ गये, यह जानकर वह विस्मित ।