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गोरा

गोरा [३०५ हो बोली- हाँ, बाबूजी ! आज अब यह बात रहने दीजिये, कल सबेरे कहूंगी! सुचरिताके बैठने पर परेश बाबू ने कहा---तुम्हारी मौसीको यहाँ कष्ट होता है सो मैं समझता हूं । उनका धर्म-विश्वास और पाचरण लावण्य की माँ के ब्राहसंस्कार में इतना अधिक आघात देगा यह मैं पहले न जान सका ! अब देखता हूँ, वह उसे तकलीफ दे रही है, तब इस घरमें तुम्हारी मौसी कैसी रह सकेंगी। सुचरिताने कहा मौसी तो यहाँ से जानके लिए तैयार हैं। परेश बाबू ने कहा -मैं जानता हूँ, वे जायँगी । तुम्हीं दोनों उनके एकमात्र आत्मीय हो । तुम उनको मिखारिन की तरह विदा कर सकोगी, यह मैं नहीं जानता। यह बात मैं कई दिनोंसे सोच रहा था। मौसीका सङ्कट परेश बाबू जानते हैं और उसके लिए चिन्तित हैं, इसका कुछ भी अनुभव सुचरिताको न था। मेरी मौसीका कष्ट जाननेसे उन्हें दुःख होगा, इस भ्यसे इतने दिन तक बड़ी सावधानीसे चलती थी। भूलकर भी वह परेश बाबूके आगे इस विषय में कुछ न बोलती थी । आज परेश बाबूकी बात सुनकर वह अचम्भे में आ गई । उसकी आँखोंमें आँसू उमड़ पाये। परेश बाबूने कहा—तुम्हारी मौसीके लिए मैंने एक मकान ठीक कर रस्सा है। सुचरिताने कहा- किन्नु वह ना- परेश बाबू-भाड़ा नहीं दे सकेंगी ! भाड़ा वे क्यों देंगी ? भाड़ा नुम देना। नुचरिता उनके कहने का मतलब न समझकर चुपचाप उनके मुंहको ओर देखने लगी। परेश बाबूने हँसकर कहा--तुम अपने ही मकान में रहने देना, तब भाड़ा न देना पड़ेगा। सुचरिता और मी आश्चर्य में डूब गई। परेश बाबने कहा- तुम फा० नं०२०