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गोरा

गोरा नहीं जानती कि कलकत्ते में तुम्हारे दो मकान हैं । एक तुम्हारा और एक सतीश का मृत्युके समय तुन्हारे पिता मुझे कुछ रुपया दे गये थे। उस रुपयेको किसी तरह बढ़ा कर उससे मैंने दो मकान मोल लिये हैं । इतने दिन तक वे भाड़े पर उठा दिये गये थे। भाड़े का रुपया जमा हो रहा था । तुम्हारे घर का भाड़ा कुछ दिनसे बन्द है। वह खाली पड़ा है। वहाँ रहने में तुम्हारी मौसी को कोई तकलीफ न होगी। सुचरिताने कहा- वहाँ क्या वह अकेली रह सकेंगी। परेश बाबूने कहा -तुम्हारे रहते वे अकेली क्यों रहेंगी ? सुन्चरिताने कहा-मैं अभी आपसे यह बात कहनेके लिए आई श्री मौसी जानेके लिए तैयार थी। मैं सोच रही थी कि उसे इस तरह अकेली कैसे जाने दूंगी । इसीलिए आई हूँ। श्राप जो कहेंगे वही करूँगी। परेश वाचूने कहा-इस घरके बगलमें जो यह गली है, इसके दो तीन घरके बाद ही तुम्हारा घर है । इस बरामदे पर खड़े होनेसे वह घर देख पड़ता है। वहाँ रहने तुम लोगोंको अरक्षित अवस्था में रहनेका भव न होगा ! मैं तुम्हारी खबर लेता रहूँगा। सुचरिता के हृदय से मानो एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया । बड़ीमें ग्यारह बज गये। फिर वे सोने को गये। सुचरिता भी अपनी मौसीके पास चली गई। 1