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गोरा [३२६ । 5 माँ ने कहा-'वहाँ जाने में अनेक बाधाएँ हैं । क्या है, यह स्पष्ट नहीं बताया । ललिता बड़ी मानिनी है। वह दूसरी ओर अनिच्छाका लेशमात्र देखनेसे न हठकर सकती है और न कारण ही पूछ सकती है। उसने कहा---अगर बाधा है तो मत मेजो। उसके बाद ललिता जिस घर में गई वहाँ यही बात सुनी कि सुचरिता अब हिन्दू हो गई है, वह जाति-पाँति मानती है, मूर्ति पूजती है, उसके घरमें जानेसे लड़कियोके चित्त पर उसका प्रभाव पड़ सकता है। ललिताने कहा-अगर यही एक मात्र उन्न हो तो मेरे ही घर में स्कूल होगा। किन्तु इससे भी आपत्तिका खण्डन न हुआ। इसमें कुछ और भी गॉट लगी है। ललिताने अब और छात्रियोंके घर जाना उचित न समझ मुधीरको बुलाकर पूछा—सुधीर, सच-सच बतलाओ, क्या मामला है ? क्यों लड़कियों का आना एकाएक बन्द हो गया ? सुधीर-हारान बाजू तुम्हारे इस स्कूल के विरुद्ध हो गये हैं । वह नहीं चाहते कि यह स्कूल चले। ललिता-सुचरिता बहन के घर ठाकुरजी की पूजा होती है इसी से ? सुधीर-सिर्फ इतना ही नहीं। ललिता ने अधीर होकर कहा-और क्या ! कहते क्यों नहीं ? मुधीर ने कहा-बहुत बातें हैं । ललिता-शायद मैं अपराधिनी समझी गई हूँ। सुधीर चुप हो रहा । ललिताने क्रोध से मुँह लाल करके कहा, यह स्टोमरके द्वारा मेरी उस जल-यात्रा का दण्ड है। यदि मैंने वह अविचारका काम किया तो अच्छा काम करके प्रयाश्चित करने का मार्ग हमारे समाजमें एकवारगी बन्द मालूम होता है ? क्या मेरे लिये समी शुभ कर्म इस समान में निषिद्ध हैं ? मेरी और मेरे समाजकी श्राध्यात्मिक उन्नति का तुम लोगोने क्या यही मार्ग ठीक किया ?