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गोरा

गोरा विनयसे जलपान का आग्रह कर चुकने पर महिम अपनी तुधा निवारण करने घरके भीतर गया । गोरा की टेवल पर से कोई किताब खींच कर विनय उसके पन्ने उलटने लगा। नौकरने आकर कहा-माँ बुलाती है। विनय ने पूछा-किसको ? नौकर—आपको । विनय--वहाँ और लोग हैं ? नौकर-जी हाँ। छतके ऊपर पैर रखते ही सुचरिताने पहले ही की तरह अपने स्वाभाविक स्निग्ध कण्ठसे कहा-"अाइए, विनय बाबू ।" यह सुधा सिन्चित स्वर सुनकर विनयने मानो आशातीत धन पाया। बिनय जब घरके भीतर आया तब उसको देख कर सुचरिता और ललिता को बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने सोचा कि विनय को न जाने क्या हो गया है, जिसका चिन्ह इस थोड़े से ही समयमें इसके चेहरे पर झलकने लगा है। जैसे किसी सरस श्यामल खेत पर टिड्डी-दलके उत्तर पड़नेसे वह सूख जाता है, उसी खेतकी तरह विनय का सहास्य मुख फीका हो गया है । ललिताके मन में वेदना और करुणा के साथ-साथ कुछ आनन्द का आभास दिखाई दिया । और दिन होता तो ललिता एकाएक विनयके साथ बात न करती- किन्तु आज जैसे ही विनय घरमें आया वैसे ही उसने कहा-विनय बाबू, आपसे एक वातका विचार करना है। विनय के हृदयमें यह शब्द आनन्दके रूपमें लहराने लगा। वह मारे खुशीके भौंचक सा हो रहा। उसकी मुरझाई हुई आशा लता ललिता के शीतल वाक्य-जलसे एकाएक लहलहा उठी। विनयके उदास चेहरे पर तुरन्त प्रसन्नता की झलक दिखाई देने लगी। ललिताने कहा-हम कई बहने मिलकर एक छोटी सी कन्या- पाठशाला खोलना चाहती है। -