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गोरा

गोरा [३३३ विनयने उत्साहित होकर कहा-कन्या-पाठशाला स्थापित करना दो बहुत दिनसे मेरे जीवन का एक संकल्प है। ललिता--आपको इस कार्य में हमारी सहायता करनी पड़ेगी। विनय-मुझसे जहाँ तक हो सकेगा, पीछे न हटूंगा। ललिता- हम लोगों को ब्राह्म समभकर हिन्दू लोग हमारा विश्वास नहीं करते । इस विषय में आपको कुछ भार अपने ऊपर लेना होगा। विनयने प्रसन्न होकर कहा- आप अन्देशा न करें। मैं वह भार लेने को तैयार हूँ। आनन्दमयी-हाँ, यह अवश्य भार लगा ! लोगोंको बातों में मुला कर वश में कर लेना यह खूब जानता है। ललिता-पाठशालाका काम किस नियमसे करना होगा, उसके लिए क्या सामान दरकार है, समय नियत करना, लासबन्दी करना, क्लास में कौन सी किताब पढ़ाई जायगी-ये सब काम आर कीजिगा । ये सव काम तो विनवके लिए कुछ काठन नहीं है, किन्तु वह कुछ सोचकर एकाएक ठिठक गया। वरदानुन्दरी ने जो अपनी लड़कियोंके साथ उसे मिलनेको मना कर दिया है और समाजमें उन नबोंक विद्ध जो आन्दोलन हो रहा है, इसकी कुछ भी खबर क्या ललिता को नहीं है । ऐसी हालत में विनय यदि ललिताका अनुरोध रखने की मात्रा करतो वह अन्याय या ललिताके लिए अनिट तो न होगा। यह नश्न उभे आघात पहुँचाने लगा। इस ओर ललिता बदि किती शुभ कार्य में उससे सहायता की प्रार्थना करे तो उस अनुरोधका यथा साध्य पालन करना विनय अपने जीवन उद्देश्य समझेगा। ललिता की बात से सुचरिता को भी बड़ा आश्चर्य हुअा। खन्न में उसे इसकी भावना न थी कि ललिता एकाएक इस तरह बिनय से कन्या- - पाठशाला के लिए अनुरोध करेगी। एक तो विनयके विषय में समाजमें चारो ओर घोर आनदोलन हो रहा है, उस पर फिर ऐसा बर्ताव ! ललिता