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गोरा

गोरा [ ३५ इनकी पहली स्त्री एक लड़का पैदा होने के बाद मर गई थी। उस समय इनकी अवस्था तेईस वर्षकी थी। लड़केको माताकी मृत्यु का कारण मान- कर कृष्णदयाल ने क्रोध के मारे उसे अपनी ससुराल में छोड़ दिया और आप प्रवल वैराग्यकी झोंक में एक दम पछाँह चले गये। परन्तु छः महीने में ही वैराग्यका नशा उतर गया। उन्होंने काशी वासी सावं भौम महाशव की पोती पितृहीना आनन्दमयी से ब्याह कर लिया। पछाँहमें कृष्णदयालने नौकरी खोज ली, और अनेक उपायों से अपने मालिकों को प्रसन्न मी कर लिया । इसी बीच में सार्वभौनकी मृत्यु होगई और कोई अभिभावक न होने के कारण स्त्री को अपने पास ही लाकर रखना पड़ा। उधर इसी अवस्था में सिपाही-विद्रोह हो गया ! कृष्णदयाल ने कौशल से दो-एक ऊँचे श्रोहदे के अँगरेजों की जान बचाई, जिसके बदले में इन्हें यश और जागीर भी मिली । गदर के कुछ दिन बाद ही इन्होंने नौकरी छोड़ दी और बच्चे गोरा को लेकर कुछ दिन काशी में रहे । गोरा जब पाँच साल का हुअा, तब ऋणदयाल काशी से कलकत्ते चले आये। बड़े लड़के महिम को भी उसकी ननिहाल से बुला लिया । महिम को पाल पोस कर पढ़ा लिखा कर आदमी बनाया । इस समय महिम अपने पिता के मिलने वाले नुरब्बियों के अनुग्रह से सरकारी खजाने में नौकर है, और खूब तेजी के साथ अपना काम कर रहा है गोरा. लड़कपन से ही अपने मुहल्ले के और स्कूल के लड़कों की सरदारी करता था। मास्टर और पण्डित के जीवन को असह्य बना देना ही उसका प्रधान काम और खेल था । वह उनके नाक में दम किए रहता था। कुछ सयाना होते ही वह छात्रों के क्लबमें “स्वाधीनताहीन होकर कौन जीना चाहता है" और "बीस करोड़ मनुष्व जहाँ रहें, वहाँ क्या नहीं किया जा सकता" . इत्यादि भावोंकी कविताएँ सुनाकर, अँगरेजीमें गर्मागरम लेकचर देकर क्षुद्र विद्रोहियोंका दलपति ( सरदार ) हो उठा । अन्तमें जव एक समय छात्रसभा स्वरूप अण्डेके खोलको तोड़कर गोराने सयानोंकी सभामें कल काकली ( बच्चोंका शब्द ) सुनाना शुरू किया, तवं कष्ण- in