पृष्ठ:गोरा.pdf/३५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ५१ ]

[५१] सुचरिताने अचानक आनन्दमय को देखकर विस्मित होकर कहा- मैं तो आपही के पास जानेके लिये तैयार हो रही थी। आनन्दमयीने हँसकर कहा--तुम मेरे पास आने को तैयार हो रही हो, यह तो मैं नहीं जानती थी, किन्तु तुम जिस बातके लिये अनेको तैयार हो रही थी, उसकी खबर पाकर मुझसे रहा न गया, मैं चली आई। आनन्दमयी को खबर मिलने की बात सुनकर सुचरिता को सचमुच बड़ा आश्चर्य हुश्रा । आनन्दमयीने कहा बेटी, विनयको मैं अपने लड़के ही की तरह जानती हूं। उसी विनयके सम्पर्क से उस समय भी, जब तुम को देखा सुना नहीं था, मैंने तुम्हें मन ही मन कितनी ही असीसें दी हैं ! तुम लोगों के साथ कोई अन्याय होने की बात सुनकर भला मैं किस तरह स्थिर रह सकती हूँ ? मेरे द्वारा दुम लोगों का कुछ उपकार हो सकेगा या नहीं, सो तो नहीं जानती; किन्तु मन जाने कैसा हो उठा, इसीसे तुम लोगोंके पास दौड़ी आई हूं। बंटी विनयकी अोरसे कुछ अन्याय हुआ है क्या? सुचरिता- कुछ भी नहीं । जिस बातको लेकर खूब हलचल मची हुई है, उसके लिए ललिता ही जिम्मेदार है। ललिता अचानक किसीसे कुछ कहे-सुने बिना ही स्टीमर पर चली आयेंगी, इसकी विनय बाबू ने कल्पना भी नहीं की थी। मगर लोग इस ढङ्गसे इस बात को उठा रहे हैं, जैसे वे दोनों जने गुप्त रूपसे इसके लिए सलाह कर चुके थे। उधर ललिता ऐसी तेजस्विनी लड़की है कि इसकी कुछ भी सम्भावना नहीं कि वह प्रतिवाद करे या किसी तरह समझाकर सब खुलासा हाल किसीसे कहे कि असलमें किस तरह क्या घटना हुई थी। !