पृष्ठ:गोरा.pdf/३५९

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[ ५२ ] परेश वाबूने कहा--विनय, तुम एक सङ्कटसे ललिता का उद्धार करने के लिये ऐसा दुःसाहसिक काम करो; यह मैं नहीं चाहता । समाजकी श्रालोचनाका विशेष मूल्य नहीं है। अाज जिस विषय पर तरह-तरहकी गप्पें उड़ रही हैं दो दिनके बाद वह किसीको याद भी न रहेगा। ललिताके प्रति कर्तव्य पालन ही के लिये विनय कटिबद्ध होकर अाया था और इस विषयमें उसे कुछ भी सन्देह न था । वह जानता था कि इस विवाह से समाज में विरोध उपस्थित होगा । और इससे भी बढ़कर उसे यह भय था कि गोरा बहुत क्रोध करेगा। किन्तु केवल कर्तव्य बुद्धिकी दुहाई देकर इन सव अप्रिय कल्पनाओंको उसने मनसे हटा दिया था । ऐसी अवस्था में परेश बाबूने लव एकाएक उसकी कर्तव्य-बुद्धि पर अस- समति प्रकटकी तव विनयने उसे किसी तरह काटना न चाहा। उसने कहा—मैं आपके स्नेह-ऋणको कमी चुका न सकंगा । मेरे कारण यदि आपके घर में दो दिनके लिए मी कोई तनिक सी अशान्ति हो तो वह मैं कमी नहीं सह सकता। परेशबाबु-विनय, तुम मेरे कहनेका आशय टीक-टीक नहीं समझते । मेरे ऊपर जो तुम्हारी श्रद्धा है उससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ। किन्तु उस श्रद्धा को शिरोधार्य करके कर्तव्य पालन के अभिप्राय से जो तुम मेरी कन्या से व्याह करने को प्रस्तुत हुए हो यह मेरी कन्या के लिये गौरवकी बात नहीं। इसीलिए मैंने तुमसे कहा था कि कोई ऐसा भारी सङ्कट नहीं, जिसके लिए तुम्हें कुछ त्याग स्वीकार करने की आवश्य- कता हो। जो हो, विनयको कर्तव्यके हाथसे छुटकारा मिला । किन्तु पिंजरे का ३५६ -