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गोरा

३६२] इसी समय सतीश घरमें आया । और धीरे-धीरे बोला-हारान बाबू आए हैं । सुचरिता चौंक उठी, मानो किसी ने चाबुक मारा हो ।हारान वाबू का आना उसे अच्छा न लगा । उसे किसी तरह यल देने ही में उसने अपना कुशल समझा और उनका आना गोरा को जाहिर न हो, वह भी उसकी आन्तरिक इच्छा थी । सतीश की धीमी आवाज गोरा के कान तक न पहुंची होगी, यह समझकर सुचरिता झट वहाँ से उठी ! उसने जीने से नीचे उतर हारान बाबू के सामने खड़ी होकर कहा-मुझे क्षमा कीजिये, आज आपके साथ बातचीत करने की सुविधा न होगी। हारान बाबू-सुविधा क्यों न होगी। सुचरिता इसका सीधा उत्तर न देकर बोली-कल यदि आप पिता जी के यहाँ आवे तो मुझसे भेंट हो सकेगी। हारान बाबू-मालून होता है, इस समय आपके यहाँ कोई बैठा है ? इस प्रश्न को भी सुचरिता ने उड़ा दिया । उसने कहा-आज मुके फुरसत नहीं । अाज कृपा कर मुझे क्षमा करें। हारान बाबू --किन्तु सड़क से गौर वाबू का कंठस्वर सुन पड़ा है, मालूम होता है वे अभी यहीं हैं। इस प्रश्नको वह टाल न सकी, मुँह लाल करके बोली-हाँ, हैं तो । हारान बाबू ने कहा- अच्छी बात है, उनसे भी मुझे कुछ कहना था। यदि आपको बात-चीच करने की फुरसत न हो तो कोई हर्ज नहीं है तब तक गौर बाबू से बातचीत करूँगा। यह कह कर और सुचरिता से सम्मति की प्रतीक्षा किये बिना ही वह जीने से ऊपर जाने लगे। सुचरिता हारान बाबू के प्रति कोई लक्ष्य न करके ऊपर के कमरे में गई और गौर बाबू से बोली-मौसी आपके लिए, जलपान तैयार करने गई है, उन्हें देख आऊँ। यह कह कर वह चली गई और हारान वाबू गम्भीर भाव धारण करके एक कुर्सी पर जा बैठे। हारान बाबू ने गोरा से कहा-आप कुछ दुर्बल दिखाई देते हैं ? गोरा-जी हाँ, दुर्बल होने का कारण ही था ।