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गोरा

[xl; । गोरा चुपचाप बैठे कुछ सोच रहे हैं, दोनों में किसी तरह का कोई सम्भाषण नहीं है । तब उसका क्रोध अपनी सीमा तक पहुँच गया। किसी तरह अपने को संभाल द्वार पर खड़ी हो उसने पुकारा-राधारानी। सुचरिता उठकर उसके पास गई। हरिमोहिनीने मीठे स्वर में कहा- बेटी, बाम एकादशी है, मेरा जी अच्छा नहीं है । तुम रसोईघरमें जाकर, चूल्हा जलाओ, मैं तब तक गौर वाबूके पास बैठती हूं। मौसीका भाव देख सुचरिता उठ कर रसोई-घरमें चली गई । कमरेमें, हरिमोहिनीके पाते ही गोरा ने उसे प्रणाम किया। वह कोई बात न. बोलकर कुरसी पर बैठ गई । कुछ देर मुँह फुलाये चुर रही, फिर गोग. की ओर देखकर बोल:-तुम ब्राह्म नहीं हो ? गोरा-जी नहीं। हरिमोहिनी-हमारे हिन्दू-समाजको तुम मानते हो ? गोरा-जी हाँ, मानता हूँ हारमोहिनी-तो तुम्हारा व्यवहार कैसा है ? हरिमोहिनी के इस प्रतिकूल भाषणका कुछ अर्थ न समझ गोरा चुपचाप उसके मुंहकी ओर देखने लगा। हरिमोहिनीने कहा-राधारानी अव अवोध बालिका नहीं है, वह अब सयानी हुई । तुम उसके आत्मीय नहीं हो, तुमसे उसका कोई नाता भी नहीं । तब इस तरह, रोज-रोज आकर उसके साथ घण्टों वाते करना कैसी बात है ! वह स्त्री है, घर का काम-धन्धा करेगी। उसकी इन सब बातोंमें रहने की क्या जरूरत ! इससे उसका मन दूसरी ओर जा सकता है। तुम तो बड़े ज्ञानी हो-देशके सभी लोग तुम्हारी प्रशंसा करते हैं किन्तु हमारे देशमें ये बातें कमी नहीं थीं। किस शास्त्र में भी नहीं लिखी हैं। यह सुनकर गोरा के मनमें बड़ा धक्का लगा । सुचरिता के सम्बन्ध में ऐसी बात मैं किसीके मुँह से सुन सकता हूँ, इसका स्वप्नमें भी विचार उसने नहीं किया था। ।