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गोरा

गोरा गोरा-माँ, तुम्हारी इस बातसे मुझे सबसे अधिक चोट पहुँचती है। आनन्दमयीने अपनी अश्रुधाराक्रांत स्निग्ध दृष्टि से गोराके सारे शरीर को छूकर कहा-बच्चा, ईश्वर जानते हैं, तुझे इस अाघातसे बचानेकी शक्ति मुझमें नहीं है। गोराने उठ खड़े होकर कहा-तो फिर मुझे क्या करना होगा, सो तुमसे कहूँ ? मैं विनयके पास जाता हूं-उससे कहूँगा--तुमको अपने न्याहके मामले में लपेटकर वह समाजके साथ तुम्हारे विच्छेद को और भी न बढ़ावे । क्योंकि यह उसका अत्यन्त अन्याय और स्वार्थपरताका काम होगा। आनन्दमयीने हँसकर कहा-अच्छा तू जो कर सके वह कर । उससे जाकर कह, उसके बाद मैं देख लूंगी। गोराके चले जाने पर आदन्दमयी बहुत देर तक बैठी बैठी सोचती रही ! उसके बाद धीरे धीरे उठकर अपने स्वामीके रहने के स्थान को चली गई। अानन्दमयीको देखकर बह व्यस्त हो उठे । आनन्दमयी उनसे काफी फासले पर कोठरी की चौखट पर बैठकर. चोली-देखो, बड़ा अन्याय हो 1 कृष्णदयाल सांसारिक न्याय अन्यायके बाहर पहुँच चुके थे। इसीलिए लापरवाहीके साथ यूछा-क्या अन्याय ! आनन्द०-गोराको अब एक दिन भी बहलाकर रखना उचित न होगा। धीरे धीरे बात बहुत बढ़ती जाती है। गोराने जिस दिन प्रायश्चित्तका प्रसंग उठाया था उसी दिन कृष्णः- दयालके मन यह बात श्राई थी। उसके बाद योग साधना की विविध प्रक्रियामोंमें उलझ पड़नेसे उन्हें इस बात पर विचार करने का अवकाश नहीं मिला। आनन्दमयीने कहा -शशिनुखीके ब्याह की बात चीत हो रही है। --