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गोरा

गोरा सुचरिता सोच रही थी कि इस विवाहमें किसी सलाह या सहायता के लिए मेरी जुलाहट क्यों न हुई और यह बात वह उनसे पूछना चाहती थी, परन्तु पूछने का साहस न होता था, क्योंकि उसकी ओर भी इस दफे कोई बाधा या पड़ी थी। नहों तो वह बुलाने की अपेक्षा न रखती। सुचरिता के मनमें जिस बात का सोच हो रहा था: परेश बाबूने ठीक उसी बातका उत्थान किया। कहा--राधा, इस दफे मैं तुमको बुला न सका। सुचरिता-क्यों नहीं बुला सके ? सुचरिता के इस प्रश्नका कोई उत्तर न देकर परेश बाबू उसकी ओर देखने लगी। सुचरिता अब स्थिर न रह सकी; वह जरा सिर मुका कर घोली--यह सोच कर कि मेरे मन में कुछ परिवर्तन हो गया है। परेश---हाँ; यही सोच रहा था । मैं तुमसे अनुरोध कर तुम्हें संकोच में डालना नहीं चाहता था। सुचरिता-मैंने आपसे सब बातें कहनेका निश्चय किया था, किन्तु आपके दर्शन भी दुर्लभ हो गये, कहती किससे । इसीलिए आज मैं यहाँ श्राई हूं। मैं अपने मनका भाव स्पष्ट रूपसे अापके निकट प्रकट कर सकें, यह योग्यता सुझमें नहीं है मुझे इसीका डर है, कदाचित सब बातें आपके सामने मुझसे ठीक-ठीक न कहीं जा सकें। परेश-मैं जानता हूं, ये सब बातें स्पष्ट कहना सहज नहीं है। तुमने जिस पदार्थको अपने मनमें केवल मावके भीतर पाया है उसको तुम अनुभव मात्र कर सकती हो किन्तु वाक्य द्वारा उसका स्वरूप नहीं दरसा सकती। सुचरिता ने सन्तोष पाकर कहा-हाँ, यही ठीक है। किन्तु मेरा अनुभव ऐसा प्रबल है कि आपसे क्या कहूँ । मालूम होता है, जैसे मैंने नया जीवन पाया हो, नई चेतना पाई हो, इस तरह मैंने कभी आज तक अपने को नहीं देखा था । इतने दिन मानों मेरे साथ मेरे देशके व्यतीत और भविष्यकाल का कोई सम्बन्ध ही न था। किन्तु वह विश्वव्यापी सम्बन्ध कितना बड़ा सत्य है, यह ज्ञान मैंने आज अपने हृदयमें ऐसे