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गोरा

. n ४५२] गोरा इसके बाद घर आँगन साफ करनेकी धूम मच गई। कोई झाड़ने- बुहारने, कोई पानी लाने, कोई गायके गोबरसे लीपने और कोई दीवाल साफ करने लगी । जो मजदूरिने काम करने को आई थीं उन सबों में सुचरिता ने काम बाँट दिये। वे अपने-अपने काम में लग गई ! आनन्द- मयी और सुचरिता बड़ी मुस्तैदीके साथ काम कराने लगी । परेश बाबूने खर्च के लिए सुचरिता के हाथ में कुछ रूपया दिया था, वह रुपया लेकर दोनों खर्च का चिट्ठा तैयार करने लगी। कुछ ही देर के बाद ललिता को साथ ले परेश बाबू स्वयं वहाँ उपस्थित हुए। ललिता को अपना घर असह्य हो गया था कोई उससे बोलता न था । बोलनेकी बात दूर रही, कोई उसकी ओर प्रसन्न दृष्टि से देखता भी न था। उन लोगोंकी यह उदासीनता पग-पग पर उसे चोट पहुँचाने लमी । आखिर वरदासुन्दरीके साथ समवेदना प्रकट करने के लिए जब मुन्ड के मुन्ड उसके बन्धु-बान्धव आने लगे तब परेश बाबूने ललिता को इस मकानसे अन्यत्र ले जाना ही अच्छा समझा । ललिता बिदा होते समय बरदासुन्दरीको प्रणाम करने गई तो वह मुह फेरकर बैठी रही और उसके चले जाने पर आँसू गिराने लगी । ललिता के इस विवाहोल्लवमें लावण्य और लीलाका मन विशेष उत्सुक था । अगर वे किसी उपाय से छुट पातीं तो दौड़कर ललिताका विवाह देखने जाती । किन्तु ललिता जब चली गई तव ब्राह्म-परिवारके कठोर कर्तव्यका स्मरण करके वे मुह लटकाकर चुपचाप बैठ रही । दाजे के पास ललिता ने सुधीरको देखा, किन्तु सुधीरके पीछे उसके समाजके और कई प्रवीण व्यचि थे, इस कारण उसके साथ कोई बातचीत न हो सकी। गाड़ीमें बैठने के साथ ललिता ने देखा, बेन्चके एक कोनेमें कागजमें लपेटी कोई चीज रक्खी है ! खोलकर देखा, जरमन सिलवरका एक फूलदान है। उस पर अँगरेजी भाषामें वास्य खुदा था, “प्रसन्न दम्पतिको ईश्वर चिरायु करें।" और एक कार्ड पर सुधीरके नामका पहला अक्षर अंगरेजी में लिखा था । ललिता ने आज छातीको पत्थर कर प्रण किया