पृष्ठ:गोरा.pdf/४६

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[ ७ ] सबेरे उठकर विनयने देखा प्रातःकालका प्रकाश दुधमुंहे बच्चेकी हँसी की तरह निर्मल होकर खिल उठा है ! दो एक सफेद बादल बिलकुल ही बिना प्रयोजनके अाकाशमें इधर उधर उड़ रहे हैं। बरामदे में खड़ा होकर और एक निर्मल प्रभातके स्मरणसे जिस समय वह पुलकित हो रहा था इसी समय उसे देख पड़ा परेश बाबू एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथमें सतीशका हाथा पकड़े सड़क पर धीरे धीरे चले जा रहे हैं। सतीशने जैसे ही बरामदे में विनयको देख पाया वैसेही खुशीसे ताली बजाकर विनयका नाम लेकर चिल्ला उठा । परेश बाबूने भी सिर उठा कर देखा बरामदे में विनय खड़ा हुआ था। विनय चटचट ऊपरसे नीचे उतरा वैसे ही सतीशको लिए हुए परेशने भी उसके घर में प्रवेश किया। सतीशने विनयका हाथ पकड़ कर कहा--विनय बाबू अापने उस दिन हमारे घर आनेके लिए कहा था-मगर आये नहीं ? लेह पूर्वक सतीशकी पीठ पर हाथ रख कर विनय हँसने लगा। परेश बाबू सावधानी के साथ अपनी छड़ी को टेबिलके सहारे खड़ा करके कुर्सी पर बैठ गए और कहने लगे -उस दिन आप न होते तो हम लोगोंके लिए बड़ी मुश्किल होती। आपने हमारा बड़ा उपकार किया । विनयने व्यस्त हो कर कहा--आप कहते क्या है ! मैंने किया ही क्या ? सतीश अचानक उससे पूछ बैठा--विनय बाबू आपके कुत्ता नहीं है ? विनयने हँसकर कहा--कुत्ता ? ना कुत्ता नहीं है। सतीशने फिर पूछा- क्यों, आप कुत्ता क्यों नहीं रखते ? विनयने- कहा-कुत्तेके पालनेका कभी ख्याल नहीं पाया ।