पृष्ठ:गोरा.pdf/४६१

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-- । गोरा [rar किसीको मना करो, चुप हो रहो।-गोरा भाई क्या तुमने मुझसे हार मानी है ! तुम्हारी हार तुम्हारी माँके आगे है, हजार बार हार स्वीकार करनी पड़ेगी माँ क्या और कहीं है । गोराने यद्यपि आनन्दमयीको रोकने लिए बड़ी चेष्टा की थी, तथापि वह उसकी कोई बाधा न मान, उसके क्रोध ओर कष्ट की कुछ पखा न करके विनय के ब्याहमें चली गई। इससे गोरा के मन में कोई कष्ट न हुआ बल्कि उसने एक-अपूर्व आनन्दका अनुभव किया था। विनय ने उसकी माताके अपरिमेय लेहका अँश पाया था । गोराके साथ विनयका चाहे जितना बड़ा विच्छेद हो गम्भीर लेह सुधाके अंशसे उसे किसी तरह वंचित न करनेका निश्चय जानकर गोराके हृदय में तृप्ति और शान्ति दोनों एक साथ उत्पन्न हुई। और बातोंमें वह विनयसे बहुत दूर जा सकता है, किन्तु इस अक्षय मात्र लेह के बन्धनमें अत्यन्त गुप्त रूपम ये दोनों चिरमित्र बहुत दिनों तक एक दूसरेके अत्यन्त निकरत्य होकर रहेंगे। विनयने कहा-तो मैं अब जाता हूँ। अगर तुम वहाँ आना एकदम पसन्द नहीं करते, तो मत आओ। परन्तु मनमें नाराजी न रखा । इस मिलनसे मेरे जीवनने कितनी बड़ी सार्थकता प्राप्त की है, उस यदि तुम सोचोगे तो कभी हमारे इस विवाहको अपनी मित्रता की सीमासे बाहर न कर सकोगे । यह मैं तुमसे जोर देकर कहता हूँ। यह कहकर विनय उठ खड़ा हुन । गोराने कहा-विनय २०, इजना क्यों उकता रहे हो ? तुम्हारे व्याह का लग्न तो रातमें हैं अमी से उसकी इतनी जल्दी क्या है ? गोराके इस लेह अनुरोध से विनय दुरन्त बैठ गया। इसके बाद आज बहुत दिनोंके अनन्तर, इस भोरके समय दोनों पहलेकी तरह घुल-दुलकर बातें करने लगे। विनयने गोरासे कहा-मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, मनुष्यकी सारी