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गोरा

, गोरा यह सलाह सुन सतीश दौड़कर आया और सुचरिताके गलेसे लिपट कर बोला-हाँ, बहन, मैं भी तुम्हारे साथ रहूँगा। सुचरिताने कहा -तुमको जो पढ़ना है। सतीश-विनय बाबू मुझको पड़ावेंगे। सुचरिता--विनय बाबू अभी तुम्हारी माल्टरी नहीं कर सकेंगे। विनय पास के कमरेसे बोल उठा--अच्छी तरह कर सकूँगा। मैं एक ही दिनमें क्या ऐसा असमर्थ हो गया हूँ यह मेरी समझ में नहीं आता । आनन्दमयीने सुचरितासे कहा- तुम्हारा यहाँ रहना क्या तुम्हारी मौसी पसन्द करेंगी। सुचरिता - मैं उनको एक चिट्ठी लिखती हूं। आनन्दमयी--तुम मत लिखो, मैं ही लिखूगी। अानन्दमयी जानती थी कि सुचरिता यदि रहने की इच्छा प्रकट करंगी तो हरिमोहिनी उस पर खफा होगी। किन्तु मैं सुचरिताको कुछ दिन अपने पास रहने देने का अगर उससे अनुरोध करूँगी तो मुझी पर क्रोध करेगी, और इसमें कुछ हानि नहीं । आनन्दमयीने पत्रमें यह प्राशय जताया कि ललिताके नये घरका प्रबन्ध कर देनेके लिए कुछ दिन तक मुझे विनयके घर रहना होगा। यदि सुचरिताको भी मेरे साथ कुछ दिन और रहनेकी आज्ञा मिल जाय तो मुझे बड़ी सहायता मिलेगी। आनन्दमयी के पत्रसे हरिमोहिनी केवल क्रुद्ध ही न हुई, वरन् उसके मनमें बड़ा भारी सन्देह भी उपजा । उसने सोचा कि मैंने इसके बेटेको तो अपने यहाँ बानेसे रोक ही दिया है। अब सुचरिता को फंसाने के लिए माँ कौशल जाल बिछा रही है । इसमें माँ बेटे दोनों की सलाह है। आनन्दमयी किसी तरह अपने बेटे का व्याह सुचरिता के साथ कर देना चाहती है। अानन्दमयी की चेष्टा शुरूसे ही उसे अच्छी न लगती थी। अब कुछ भी विलम्ब न कर जितना शीव हो सके, सुचरिता को प्रसिद्ध राव-परिवार के घर दे देने हीसे वह निश्चिन्त होगी। फिर कैलाश