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गोरा

गोरा -- उसका अनुभव किया है, उसीने तो सुचरिताको प्राप्त किया ! और कोई कभी उसे इस तरह कैसे पावेगा ? हरिमोहिनीने कहा-राधारानी क्या सदा इसी तरह क्वॉरी रहेगी। यह भी कमी क्या हो सकता है या होना चाहिये ? यह भी तो ठीक है । गौरा तो कल प्रायश्चित करने जा रहा है ? उसके बाद तो वह सम्पूर्ण रूपसे पवित्र होकर ब्राह्मण बनेगा ! तो फिर क्या सुचरिता सदा अविवाहित ही रहेगी। उसपर यह चिर-जीवन-व्यापी दुर्वह भार लादनेका अधिकार किसको है ! स्त्री जातिके लिए इतना बड़ा वोक और क्या हो सकता है। हरिमोहिनी न जाने क्या बातें वकती चली जा रही थीं, उनका एक अक्षर भी गोराके कानों में नही पहुँचता था । गोरा सोचने लगा- पिताजी जो इस तरह जोर देकर मुझे प्रायश्चित करने से रोक रहे हैं, सो उनके इस निषेधका क्या कुछ भी मूल्य नहीं है ? मैं अभी पिताजी के पास जाऊँ, आज अभी इसी सन्ध्याकालमें मैं उनसे जोर देकर पूछू कि उन्होंने मुझमें ऐसा क्या देख पाया है ? प्रायश्चित्तकी राह मा मेरे लिए बन्द है, ऐसी बात. उन्होंने क्यों कही ? अगर वह मुझे वह बात अच्छी तरह समझा दे सकें, तो उधरसे मैं छुट्टी पा जाऊँगा। हरिमोहिनीसे गोराने कहा आप जरा ठहरिए, मैं अभी आता हूं गोरा फुर्तीके साथ अपने पिताके पास गया। उसे जान पड़ा कृष्णदयाल अभी उसे छुटकारा दे सकते हैं । साधनाआश्रमका द्वार बन्द था ! गोराने दो एक बार धका दिया, मगर नहीं खुला । कोई बोला भी नहीं ! भीतर से धूप की खुशबू आ रही थी ! कृष्णदयाल अाज सब दरवाजे बन्द करके संन्यासी के साथ अत्यन्त गूढ और अत्यन्त दुरुह एक योग की प्रणाली का अभ्यास कर रहे थे। 1