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गोरा

४६४] गोहरा था, वह भी पहिरे ही आया था। बदनमें कोई कुरता न था सिर्फ एक- चादर कन्धे पर था और उसका सारा विशाल शरीर खुला हुआ था। अपना परिचय पानेके पूर्व यदि गोरा अंग्रेज डाक्टरको देख पाता तो उसके मन में विद्वेष उत्पन्न हुए बिना न रहता। आज डाक्टर जब रोगी की परीक्षा कर रहा था तब गोराने बड़ी उत्सुकताके साथ उसकी ओर. देखा वह बार-बार अपने मनसे पूछने लगा, क्या यही आदमी यहाँ सबकी अपेक्षा मेरा अात्मीय है। डाक्टर ने परीक्षा करके और पूछकर कहा--कोई वैसा बुरा लक्षण तो दिखाई नहीं देता ! नाड़ीकी गति भी शङ्काजनक नहीं, हृत्पिण्डमें भी कोई विकार मालूम नहीं होता । जो उपद्रव हुआ है सावधान होकर औषधि सेवन करनेसे फिर न होगा। डाक्टरके चले जाने पर गोरा कुछ न बोल कर कुर्सीसे उटनेको उद्यत हुआ। डाक्टरके अानेसे अानन्दमयी पास के कमरे में चली गई थीं । वह दौड़ कर आई और गोरा का हाथ पकड़कर बोली--बेटा ? तू मुझ पर क्रोध मत कर, क्रोध करेगा तो मैं प्राण दे दूँगी। गोरा--तुमने इतने दिन तक मुझसे सब हाल क्यों न कहा ? कह देती तो तुम्हारी कोई क्षति न होती । अानन्दमयीने सब दोष अपने ऊपर लेकर कहा--तुमको कहीं खो न बैठू, इस भयसे मैंने यह अपराध किया है । आखिर यदि वही हो, अगर तू मुझे आज छोड़कर चला जाय, तो मैं किसीको दोष न दूंगी। तुम्हारा जाना मेरे लिए प्राण दण्ड होगा। तू जैसे पहले मेरे पास था तैसे अब भी रह । गोरा सिर्फ "म" कहकर चुप हो रहा । गोराके मुँहसे वह माँ सम्बोधन मुनकर इतनी देरके बाद आनन्दमयी. के रुके हुए आँसू टपक पड़े। गोराने कहा---माँ, एक बार परेश बाबूके घर जाऊँगा ! 2