पृष्ठ:गोरा.pdf/५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ८ ]

[८] अानन्दमयी के घरसे निकलकर विनय रास्तेमें जैसे एकदम उड़ता हुआ चला जा रहा था; उसके पैर जैसे जमीन पर ही नहीं पड़ते थे। उसका जी चाहने लगा कि मनकी जिस बातको लेकर वह इन कई दिनों तक संकोच से पीड़ित हुआ है उसको आज सिर ऊँचा करके सबके आगे कह दें। विनय जिस घड़ी ७८ नम्बरके घरके दरवाजेके पास पहुँचा ठीक उसी समय परेश बाबू भी दूसरी तरफ से आकर उपस्थित हुए। "ाो अात्रो विनय बाबू मैं बहुत खुश हुआ।" यह कह कर परेश बाबू विनयको भीतर ले गए और सड़कके किनारे ही जो उनकी बैठक थी उसमें बिठलाया। एक छोटा टेबिल रक्खा था उसके एक तरफ पीठदार वेंच और दूसरी तरफ काठ और बेंतकी दो कुर्सियाँ थीं। दीवालमें एक तरफ ईसाका एक रंगीन चित्र और दूसरी तरफ केशवचन्द सेनका फोटो लगा हुआ था ! टेबिलके ऊपर दो चार दिनके अखबार तह किए हुए स्खे थे । कोने में एक छोटी आलमारी थी जिसके ऊपर एक ग्लोब कपड़ेसे ढका हुआ था। विनय बैठा था। उसका हृदय चंचल हो उठा,जान पड़ने लगा, मानो उसकी पीठकी तरफके खुले हुए दरवाजेसे कोई बैठकके भीतर श्राकर प्रवेश कर रहा है। परेश बाबूने कहा-सोमवारको सुचरिता मेरे एक मित्रकी लड़कीको पढ़ाने जाती है। वहाँ सतीशकी हमजोलीका एक लड़का है, इसीसे सतीश भी उसके साध गरा है। मैं उन्हें पहुँचाकर अभी लोग आ रहा हूँ। और जरा देर हो जानी ना फिर आपसे मुलाकात न होती।