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६० ]
गोरा

६० ] गोरा कि जहाज के मल्लाह से लेकर कप्तान तक किसीसे भी अपने दुःखमें सहायताकी आशा नहीं करते थे; और यह जानकर वे चेष्टासे एक कातर भाव और भय प्रकाशित कर रहे थे। ऐसी अवस्थामें गोरा अपने भरसक यात्रियोंकी सहायता कर रहा था । ऊपर फरर्ट क्लास के डेक पर एक अँग्रेज और एक नई रोशनीके बंगाली बाबू जहाजका रेलिङ्ग पकड़े परस्पर हात्यालाप करते और चुरुटका धुआं उड़ाते हुए तमाशा देख रहे थे। बीच बीचमें किसी यात्रीकी कोई विशेष दुर्गति देख अंग्रेज हँस उठता था और वङ्गाली बाबू भी अपनी निर्दयतासूचक हँसीसे उसका साथ देता था। दो तीन स्टेशन इस प्रकार पार हो जाने पर गोराको यह दुर्दशा सहन न हो सकी। उसने ऊपर ा गरज कर कहा--धिक्कार है तुम लोगोंको, जरा शरम तक नहीं आती । अँग्रेज ने कड़ी दृष्टिसे गोराको सिरसे पैर तक देखा। बंगालीने कहा- शरम कैसी ! देशके इन पशु समान मूखोंके ही लिए शरम । गोराने मुँह लाल कर कहा—मूढकी अपेक्षा वह बड़ा भारी पशु है, जिसके हृदय नहीं हैं; जिसके मनमें दया नहीं है। चङ्गालीने खिसियाकर कहा -यह तुम्हारी जगह नहीं है, यह फर्स क्लास है, तुम नीचे जानो। गोराने कहा---ठीक है, तुम्हारे साथ रहनेकी यह जगह कदापि मेरे योग्य नहीं । मेरी जगह इन यात्रियों के साथ है। किन्तु मैं कहे देता हूँ, तुम फिर मुझे अपने इस फर्स्ट क्लासमें आनेके लिए मत कहना यह कहकर गोरा तेजीसे नीचे चला गया। चन्दरनगर पहुँचकर जहाजसे उतरते समय साहबने सहसा गोराके पास जा अपने सिरसे टोपी उठाकर कहा- मैं अपने निर्दय व्यवहारके लिए लज्जित हूँ। आशा करता हूँ आप क्षमा करेंगे ।" यह कह वह झटपट चला गया।