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गोरा

गोरा है यह जानने पर काँटा निकाला जा सकता है। मनके कांटेको खोज निकालनेके लिए वह रातको छत पर अकेली बैठी रही। उसने अपने मनके कारण तापको उसी अन्धकारकी निर्मल धारासे धो डालनेकी चेष्टाकी, किन्तु कोई फल न हुआ। अपने हृदयके एक अनिर्दिष्ठ बोझके लिये उसने रोना चाहा, किन्तु रुलाई न आई। एक अपरिचित युवक माथेमें टीका लगाकर अाया, किसी ने उसे तर्कमें हराकर उसका घमंड न चूर क्रिया इसीलिए सुचरिता इतनी देर तक खेद कर रही है । फिर उसने सोचा कि इससे बढ़कर हँसीकी बात और क्या हो, सकती है, इसीलिये इस कारणको सर्वथा असम्भव जान उसने मनसे दूर कर दिया । तब उसे असल कारण याद हो आया और याद होते ही उसे बड़ी लज्जा हुई। आज तीन-चार घंटे तक सुचरिता उस युवक के सामने ही बैठी थी और वीच बीच में उसका पद लेकर कुछ बोलती भी थी; परन्तु उस युवकने एकबार भी उसकी अोर न देखा। जाते समय भी उसने सुचरिता की ओर नजर तक नहीं डाला। इस कठोर उपेक्षाने सुचरिताके मनमें गहरी चोट पहुँचायी इसमें सन्देह नहीं । पराये घरकी स्त्रियोंके साथ मिलने जुलनेका अभ्यास न रहनेसे जो एक प्रकार का संकोच उन्पन्न होता है उस सकोचका परिचय विनयके व्यवहार में पाया जाता है पर उस संकोचके भीतर कुछ नम्रता भी है। किन्तु गोराके आचरणमें उस संकोचका चिह्नमात्र भी न था। उसकी वह कठोर और प्रबल उदासीनता सहन करना या उसको हँसीमें उड़ा देना सुचरितके लिए आज क्यों ऐसा असम्भव हो गया ? इतनी बड़ी उपेक्षाके समाने भी उसने जा अपनेको न रोक कर तर्कमें योग दिया था इसलिए अपनी बाचालताके कारण वह मरी जा रही थी । हारान बाबूके अनुचित तर्कसे जब सुचरिता एक-बार अत्यन्त उत्तेजित हो उठी थी तब गोराने उसकी ओर देखा था । उस दृष्टि में संकोचकी गन्धमान न थी । किन्तु उस दृष्टि के भीतर क्या था यह भी जानना कठिन था। तब क्या वह मन ही मन कह रहा था यह स्त्री बड़ी निर्लज्ज है अथवा इसको अमिमान कुछ काम नहीं