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गोरा

गोरा है ? पुरुषोके वाद विवादमें यह बिना बुलाये योग देने आती है। अगर उसने ऐसा ही सोचा हो तो इसमें क्या आना जाना है ? भले ही इसमें कुछ हानि लाभ की बात न हो तो भी न मालूम सुचरिता क्यों मन ही मन विशेष कष्ठका अनुभव करने लगी। इन सब बातोंको मनसे टाल देनेके लिए उसने बड़ी चेष्टा की परन्तु किसी तरह वह टाल न सकी । गोराके ऊपर उसका क्रोध बढ़ने लगा। गोराको कुसंस्कार-प्रस्त उद्धत युवक समझ कर मनके सर्वतोभावसे उसने निरादर करना चाहा, किन्तु उस कनक-भूधराकार शरीरका वज्र-कण्ठ पुरुषकी उस निःसङ्कोच दृष्टिका अनुसरण होते ही सुचरिता मन ही मन सकुचा गई। वह किसी तरह उस पुरुष-सिंहके आगे अपने गौरवकी रक्षा न कर कसी। इस प्रकार मनके साथ रोमाने रात बहुत बीत गई। चिराग बुझाकर घरके सब लोग सोने गये । सदर दर्वाजा बन्द होनेका शब्द सुन पड़ा । उससे ज्ञात हुआ कि दरखान भोजन करके अब सोने को जा रहा है। इसी समय ललिता अपने रातके कपड़े पहिनकर छत पर आई। मुचरिता से बिना कुछ कहे वह उसके पास से जा छतके एक कोने में रेलिग पकड़कर खड़ी हुई । मुचरिता मन ही मन कुछ हँसी, वह समझ गई कि ललिताने मुझ पर कोप किया है । ललिताके साथ आज उसके सोनेकी जो बात थी सो एकदम वह भूल गई। किन्तु भूल जानेकी बात कहनेसे ललिताके निकट अपराध क्षमा नहीं हो सकता । क्योंकि भूल जाना ही उसके आगे सबसे बढ़कर भारी दोष है। वह समय पर प्रतिज्ञाकी बात बाद दिला देनेवाली लड़की नहीं। इतनी देर तक वह पत्थरकी . तरह कठोर होकर बिछौने पर पड़ी थी। जितना ही समय बीतता जाता था उतना ही उसका क्रोध बढ़ता जाता था । आखिर जब क्रोध नितान्त असह्य हो गया तब वह चारपाईसे उठकर चुपचाप यह जतानेको आई कि मैं अब तक जाग रही हूँ। सुचरिता कुरसीसे उठ कर धीरे-धीरे ललिताके पास जाकर उसके गलेसे लिपट गई और बोली --मेरी लक्ष्मी, बहिन ललिता, क्रोध न करो।