पृष्ठ:गोरा.pdf/७९

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[ १२ ] विनय और गोरा दोनों परेश बाबूके घरसे निकल कर सड़क पर आये। विनयने गोराको तेजीसे चलते देखकर कहा—गोरा, जरा धीरे धीरे चलो भाई---तुम्हारे दोनों पैर हमारे पैरोंसे बहुत बड़े हैं । अगर अपनी चाल जरा कम न करोगे, तो तुम्हारे साथ चलने में मैं तो थक जाऊँगा। गोराने जाते-जाते कहा-मैं अकेले ही जाना चाहता हूँ। मुझे आज बहुत कुछ सोचना विचारना है ! इतना कहकर वह अपनी स्वाभाविक चालले तेजीके साथ चला गया। विनयके हृदयको चोट लगी। उसने अाज गोरा के विरुद्ध विद्रोह करके नियमको तोड़ा है। इसके बारे में अगर गोरा उसका तिरस्कार करता तो वह खुश होता और जैसे उसकी छाती पर का बोझा हलका हो जाता। गोरा जो विनयका साथ छोड़ कर नाराज हो कर चला गया, उस नाराजगीको विनय अन्याय नहीं समझ सका । इन दोनों मित्रांके बहुत दिनोंके सम्बन्ध में इतने दिन याद अाज सचमुच विन्न उपस्थित बरसातकी रातके सन्नाटेके अन्धकारको कँपा कर बीच-बीच में बादल गरज उटता था। विनयके मन में एक बोझ सा जान पड़ने लगा। उसे जान पड़ा, वह इतने दिनसे जिस रास्ते में चला आ रहा था, आज उतने उसे छोड़ कर और एक नई राह पकड़ी है । इस अन्धकारके वीच गोरा कहाँ गया और वह कहाँ चला जा रहा है । दूसरे दिन सबेरे उठने पर विनयका मन हलका हो गया । रातको कल्पनाके द्वारा उसने अपनी वेदना को अनावश्यक अत्यन्त बढ़ा दिया था। संबरे उसे गोरा के साथ मित्रता और परेशबाबूके परिवारके साथ