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गोरा

के साथ लड़के को भीतर ले जा कर उसके मुंह की ओर देखने लगा। लड़के ने कहा-दीदी ने मुझे भेजा है। इतना कह कर उसने विनय के हाथ में एक पन दिया।

विनय ने पत्र लेकर पहले लिफाफे पर दृष्टि डाली । साफ स्पष्ट स्त्रियों की लिखावट में अंगरेजी अक्षरों में उसका नाम लिखा था। भीतर चिट्ठी पनी कुछ न थी, सिर्फ कुछ रुपये थे

लड़का जाने को उग्रत हुआ, लेकिन विनय ने उसे किसी तरह नहीं छोड़ा, उसे प्रेम से हाथ पकड़ कर दूसरे खण्ड में ले गया ।

लड़के का रङ्ग वहन की अपेक्षा कुछ सांवला था, लेकिन मुख का दङ्ग बहुत कुछ मिलता जुलता था ! उसे देख कर विनय के मन में आप ही आप एक तरह का लेह और आनन्द उत्पन्न हुआ ।

लड़का खूब तेज था : उसने कमरे में प्रवेश करते ही दीवार में एक चित्र देखकर प्रश्न किया-यह किसका चित्र है ?

विनय ने कहा- यह मेरे एक मित्र का चित्र है।

लड़के ने कहा-मित्र का चित्र है ? आपके मित्र कौन है ?

विनब ने हँस कर कहा-तुम उन्हें नहीं पहचानते । मेरे मित्र का नाम गौरमोहन है। हम लोग उन्हें गोरा कहकर पुकारते हैं । हम दोनों मित्रों ने लड़कपन से एक साथ ही पड़ा है।

लड़का-अब भी पढ़ते हैं ?

विनय ना, अब नहीं पढ़ता !

लड़का-श्राप सब पढ़ चुके ?

विनय इस छोटे से बालक के आगे भी गर्व करने के प्रलोभन को न सम्भाल सका । बोला- हां, सब पढ़ चुका ।

लड़के ने आश्चर्य चकित होकर एक साँस ली। शायद उसने यह सोचा कि वह भी कितने दिनों में इतनी विद्या पढ़ सकेगा।

विनय-तुम्हारा नाम क्या है भाई ?