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गोरा

58 ] गोज क्लेशका अनुभव कर रहा था। विनय जेबसे चाकू निकालकर आलू छीलने बैठ गया। पन्द्रह सोलह मिनटके बाद नीचे जाकर देखा, गोरा अविनाशको साथ लेकर चल दिया है। गोराकी बैठकमें बहुत देर तक विनय चुप बैठा रहा । फिर एक लम्बी सांस छोड़कर बाहर निकला और घर चल दिया। दोपहरको भोजनके बाद गोराके पास जाने के लिए फिर विनयका मन चंचल हो उटा । विनयने कभी किसी दिन गोराके आगे अपने को झुकाने में संकोचका अनुभव नहीं किया, किन्तु अपना अभिमान न रहने पर भी बन्धुत्व के अभिमानको धोका देना कठिन है। परेश बाबूके निकट गोराके प्रति इतने दिन की निष्ठासे अपनेको कुछ विचलित सा समझ कर विनय अपनेको अपराधी अवश्य समझ रहा था, और इसके लिए उसने यहाँ तक आशा की थी कि गोरापरिहास और मसना करेगा। । पर विनयको स्वप्न में भी यह ख्याल नं था कि गोरा इनती सी बातके लिए उसे इस तरह अपनेसे अलग ठेल कर दूर रहने की चेष्टा करेगा। घरसे कुछ दूर जाकर विनय फिर लौट आया; बन्धुत्वका पीछे अपमान . न हो, इस भवसे वह गोराके घर जा नहीं सका।