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गोरा

गोर [ ६१ करते, गोराकी बातें कहते कहते; गोरा के पास जानेका उत्साह भी उसके मन में प्रबल हो उठा। इसीसे वह घड़ी में टन-टन करके चार बजते सुनकर ही चटपट कुर्सीसे उठ खड़ा हुआ। सुचरिता ने कहा-~-आप अभी चल दिये १ माँ आपके लिए भोजन बना रही हैं । और जरा देरके बाद जानेसे क्या कुछ हर्ज होगा ? विनयके लिए यह तो प्रश्न नहीं है, यह तो हुक्म है । वह वैसेही बैठ गया। लावण्य रंगीन रेशमी कपड़ोसे सजावट किये हुए कमरे में दाखिल हुई और बोली-दीदी, भोजन तैयार है। माँने छत पर बुलाया है। छत पर आकर विनय भोजन करने लगा। वरदासुन्दरी अपने सब बच्चोंके जीवन-वृत्तान्त की चर्चा करने लगी। ललिता सुचरिताको घरके भीतर घसीट ले गई। लावण्य एक चौकी पर बैठ कर गर्दन मुका कर दो लोहे की सलाइयोंसे अपना बुनने का काम करने लगी। किसीने कभी कहा था कि अनने का काम करते समय उनकी कोमल उगलियों की क्रीड़ा बहुत सुन्दर देख पड़ती है। बस तभीसे लोगोंके सामने बिला जरूरत बुननेका उसे अभ्यास सा हो गया था। परेश बाबू आ गये । सन्ध्या हो आई थी । आज रविवार को समाज- मन्दिर में उपासनाके लिए जाने की बात तय हो चुकी थी बरदासुन्दरीने विनयसे कहा---अगर कुछ आपत्ति न हो, तो क्या आप हमारे साथ समाज में चलेंगे? इसके ऊपर कोई उम्र नहीं किया जा सकता। दो गाड़ियों में बैठकर सब लोग उपासना के लिए गये। लौटते समय जब ये लोग गाड़ी पर चढ़ रहे थे, सुचरिता एकाएक जैसे चौक उये और बोली -यह गौरमोहन बाबू जा रहे हैं। इसमें किसीको सन्देह नहीं था कि गोराने इस दल को देख लिया था । किन्तु जैसे देख नहीं पाया, ऐसा भाव दिखाकर वह तेजीसे चला गया । गोराके इस उद्गत अशिष्ठ व्यवहारसे परेश-परिवारके निकट लज्जित 1