पृष्ठ:गोरा.pdf/९३

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[१४] गोरा जब दोपहर को भोजन करने बैठा, तब आनन्दमयीने धीरे धीरे जिक्र छेड़ा-याज सवेरे विनय आया था ! तुमसे भेंट नहीं हुई ? गोराने थालीसे सिर उठाये बिना ही कहा-भेंट हुई थी। अानन्दममयी बहुत देर तक चुपचाप बैठी रही। उसके बाद बोली- उससे मैने ठहरनेको कहा था, लेकिन वह न जाने कैसा अनमना सा होकर चला गया। गोराने कुछ उत्तर न दिया । आनन्दमयीने कहा-उसके मन में नजाने कौन सा कष्ट है, गोरा मैंने उसे इस तरह उदास कभी नहीं देखा। उसकी यह दशा देख कर मुझे बड़ा खेदहो रहा है। गोरा चुपचाप खा रहा था। आनन्दमयी अत्यन्त स्नेह करती थीं, इसीलिये गोरासे मन ही मन डरती थीं। वह जब खुद ही उसके ही आगे अपने मनका भाव व्यक्त नहीं करता था, तब वह उससे किसी बातके लिए अधिक जिद नहीं करती थीं। और दिन होता, तो यहीं पर वह चुप हो जातो, किन्तु अाज विनयके लिए उसके मन में बड़ी पीड़ा हो रही थी, इसीले उसने फिर कहा-देखो गोरा एक बात कहती हूँ नाराज न होना-विनय तुमको प्राणोंसे बढ़कर चाहता है, इसीसे तुम्हारी सभी बातें सहता है, किन्तु तुम जो उससे अपनी ही राह पर चलनेके लिए जबरदन्ती करोगे, तो वह सुखकी बात न होगी। गोराने बात बालने के लिए कहा-माँ, और थोड़ा दूध ले आओ। बात यहीं पर खत्म हो गई। भोजनके उपरान्त आनन्दमयी अपने तख्तके ऊपर बैठ कर चुपचाप सिलाईका काम करने लगी। लमिनियां 'घरके किसी खास नौकरके दुर्व्यवहारके सम्बधको आलोचनामें आनन्दमयी- को खीचनेकी वृथा चेष्टा करके फर्शके ऊपर ही लेट कर सोने लगी। गोराने चिट्ठी-पत्री लिखनेमें बहुत-सा समय बिता दिया । विनय अाज सवेरे यह स्पष्ट देख गया है कि गोरा उस पर नाखुश है, तो भी गोरा