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गोरा

१८ ] गोरा गोरा-इसमें बहुत सी बातें हैं, मां। अानन्दमयी होंगी बहुत बातें-किन्तु मैं केवल एक बात कहती हूँ। सभी बातों में तुम्हारी ऐसी और इतनी जिद है कि तुम जो पकड़ते हो उसे कोई तुमसे छुड़ा नहीं सकता । फिर बिनयसे ही तुम इतना क्यों चिढ़ते हो ? क्यों उसे इतने सहजसे छोड़ देना चाहते हो ? तुम्हारा अबिनाश अगर दल छोड़ना चाहता तो क्या उसे तुम इस तरह सहजमें छोड़ देते ? तुम्हारा मित्र होने ही के कारण क्या विनय तुम्हारी दृष्टि में उन सबसे कम या निकम्मा है ? गोरा चुप होकर सोचने लगा । आनन्दमयीकी इस बातने उसकी आंखें जैसे खोल दी, उसे अपना मन अच्छी तरह स्पष्ट दिखाई देने लगा। अव तक वह सोच रहा था कि मैं कर्तब्यकी खातिरसे विनयके वन्धुत्वको विसर्जन करने जा रहा हूँ, किन्तु इस समय उसे स्पष्ट जान पड़ा कि असल में बात बिलकुल इससे उलटी है। उसके बन्धुत्वके अमिमानमें धक्का लगा है-उसे वेदना पहुँची है-इसीसे वह विनयके बन्धुत्वको चरम दण्ड देनेके लिए उद्यत हुआ है । वह मनमें जानता था कि विनय को बांध रखने के लिए बन्धुत्वका बन्धन ही यथोष्ट है अन्य कोई चेष्टा प्रणयका असम्मान है। आनन्दमयीने जैसे ही समझा कि उनकी बात गोराके मन में कुछ अपना असर कर गई है ; वैसे ही वह फिर कुछ न कह कर धीरे धीरे उठनेको उद्यत हुई। गोरा भी एकाएक वेगसे उठ बैठा और अरगनीसे चादर उतार कर कंधे पर डाली। आनन्दमयीने पूछा-कहाँ जाते हो गोरा ? गोराने कहा-मैं विनयके घर जा रहा हूं। आनन्दमयी और कुछ न कह कर नीचेकी तरफ चलीं, सीढ़ियों पर पैरोंकी आहट सुनकर एकाएक रुक कर बोली-लो, विनय आप ही आ गया। 7