पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१००

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१०४ इन्सान पैदा हुआ - -- - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - में " श्रोचेमचिरी ? " " हाँ , वहीं । मेरा ख्याल है मेरे साथी अव यहाँ से कुछ ही मोल प्रागे होंगे । " " लेकिन क्या तुम चल सकोगी ? " " पवित्र कुमारी का सहारा है । क्या वह मेरी मदद नहीं करेगी ? " खैर, जब वह पवित्र कुमारी के सहारे जा रही थी तो मुझे उससे और कुछ नहीं कहना था । उसने नीचे झुक कर उस छोटे से सिकुड़े हुए असन्तुष्ट चेहरे को श्रीर देखा । उसके नेत्र से स्नेह की मधुर किरणें निकलने लगी । उसने अपने होंठ चाटे और धीरे से अपनी छाती थपथपाई । ____ मैंने श्राग जला कर केतली रखने के लिए उसके चारों तरफ कुछ पथर रख दिए । "मैं एक मिनट में तुम्हारे लिए चाय तैयार किए देता हूँ , माँ , " मैंने कहा । " श्रोह । यह बहुत अच्छा रहेगा मेरो छाती सुख सो गई है, " उसने जवाब दिया । " क्या तुम्हारे साथी तुम्हें छोड़कर चले गए थे ? " "नहीं । वे क्यो ऐमा करते ? मैं खुद ही पीछे रह गई थी । उन लोगों ने थोड़ी शराव पोली थी । और यह भी अच्छा ही हुश्रा । मैं नहीं जानती कि अगर वे यहाँ होते तो मैं क्या करती .. " ___ उसने मेरी तरफ देखा, हाथ से अपना मुंह ढक लिया , मुंह से खून थूका और फिर शर्मा कर मुस्कराने लगी । " यह तुम्हारा पहला बच्चा है ? " मैंने पूछा । " हाँ, मेरा पहला · तुम कौन हो ? " "यह दिखाई देता है कि मैं भादमी सा हूं । " " हाँ , तुम बिल्कुल श्रादमी जैसे ही लगते हो । तुम्हारी शादी हो गई ? "