पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१०१

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इन्सान पैदा हुश्रा " अभी मुझे यह सम्मान नहीं मिला । " " तुम झूठ बोल रहे हो , बोल रहे हो न ? " " नहीं , मैं झूठ क्या बोलू ? " उसने अपनी आँखें नीची करली । फिर उसने पूछा : "तुम औरतों के इस काम के विषय में इतना कैसे जानते हो ? " श्रय मैं झूठ बोला - मैंने कहा : "मैंने यह सीखा है । मैं विद्यार्थी हूँ । तुम जानती हो विद्यार्थी कौन होता है ? " " हाँ मैं जानती हूँ । हमारे पादरी का सबसे बड़ा लड़का एक विद्यार्थी है । वह पादरी बनने की पढ़ाई पढ़ रहा है । " " अच्छा, तो में भी उन्हीं में से एक हूँ . . ... अच्छा में जाकर केतली भर लाऊँ " उस औरत ने सिर घुमाकर अपने बच्चे की तरफ देखा कि वह साँस ले रहा है या नहीं । फिर उसने समुद्र की ओर देखा और बोली : "मैं अपने को साफ करना चाहती हूँ लेकिन मुझे यह नहीं मालूम कि पानी कसा है " यह कैसा पानी है ? क्या यह नमकीन और कदवा - दोनों ही तरह का है ? " " अच्छा, तुम जाकर अपने को साफ कर लो । यह अच्छा पानी है । " " क्या कहा ? " "मैं तुमसे सच कह रहा हूँ । और यह झरने के पानी से अधिक गरम है । झरने का पानी तो घरफ की तरह दंडा है । " " तुम ठीक जानते होगे ! एक श्वजराादिया का निवरसी , भेद की साल का टोप पहने , घोदे पर बदा या धीमी चाल से वों से निकला । सम्मका निर सीने पर लटक रहा था । यह झपकिरा ले रहा था । उसके छोटे से थके हुए घोड़े ने, अपने दोनों कान पदे फर मपनो गोल गाँसों को तिरदा कर हमारी तरफ देण