इन्सान पैदा हुआ १०३ " सावधानी रखना , ज्यादा मेहनत मत करना , " मैने उसे चेतावनी दी । "ठीक है. "ठीक है हट जायो " मैं पास को झादियों में चला गया । मैं बहुत पक गया था । मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे हृदय में सुन्दर चीटियों मधुर गीत गा रही है और उनका यह संगीत समुद्र से निरन्तर उठने वाली ममर ध्वनि से मिलकर इतना अाकर्षक हो उठा है कि मैंने सोचा मैं इसे पूरे वर्ष भर तक बैठा हुश्रा सुनता रहूँ । कहीं, पास ही एक झरने को कलकल ध्वनि का शब्द श्रा रहा था । इसकी ध्वनि इतनी मधुर थी मानी कोई लड़की अपनी सखी से अपने प्रियतम की बातें कर रही हो । _ झाड़ियों के ऊपर एक शिर चमका - पीले रुमाल से ढका हुया जो श्रच्छी तरह से बाँध लिया गया था । " ! यह क्या किया ? तुम जल्दी उठ बैठी हो , तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए, " मै श्राश्चर्यचकित हो चिल्ला उठा । वह औरत ढालों का सहारा लेकर जमीन पर बैठ गई । वह ऐसो दिखाई दे रही थी मानो उसको मारी शक्ति उसमें से खींच ली गई हो । उसके राख जैसे भूरे चेहरे पर कालिमा दा रही थी । केवल उसकी आँखों में जो यदे, नीले सरोवर सी लग रहो यो , एक विशेष चमक थी । उसने मृदु मुस्कान से मुस्कराते हुए कहा देखो - यह सो रहा है । " हाँ , वह अच्छी तरह मो रहा था , परन्तु जहाँ तक में देख सका उसका सोना दूसरे बच्चों से भिन्न प्रकार का नहीं था । अगर कोई अन्तर धा सो केवल परिस्थितियों का ही । यह पत्तों के एक ढेर पर ऐसो मादी के नीचे सो रहा था जैसी झापियाँ पोरेल प्रान्त में पैदा नहीं होती । " तुम भी घोड़ी देर लेट लो , मों , " मैने कहा । " नहीं, " शिथिलता से अपना सिर हिलाते हुए वह योनी । “ घभी अपनी वीजें इकट्टो करनी है और फिर उस जगह जाना है उसका क्या नाम है ? "
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